"जिस डाली में फल लगे हों वह झुक जाती है"
राम आसरे के पिताजी अधिक उम्र के कारण या विनम्रता के कारण या 'परधानी के चुनाव' के कारण झुक कर चल रहे थे,यह कह पाना मुश्किल था।राम आसरे एक बार नशे के धुन में पिताजी को धुन दिए थे,कुछ लोग इसे भी कारण बताया करते हैं।
जिज्ञासावश राम आसरे के पिताजी से मैंने इसका कारण जानना चाहा।पिताजी ने व्यंग्यात्मक हंसी में इसका जवाब कुछ इस तरह दिया," बेटा मैं डबल एम.ए.हूं।मैंने नेट और पी.एच. डी. भी किया है।बेटा अब अपने मुंह मियां मिट्ठू क्या बनूं,बस इतना समझ लो कि इस गांव में परधानी के उम्मीदवार में कोई मेरे बराबर का पढ़ा लिखा नहीं है।तुम तो पढ़े लिखे हो,यह कहावत तो सुनी होगी,' जिस डाली में फल लगे हों वह झुक जाती है ',बस मेरे झुके होने का यही कारण हैं।
पिताजी के इस उवाच से मैंने महसूस किया कि जैसे मैं भी थोड़ा सा (अपनी पढ़ाई के बराबर) झुक गया हूं।फिर मैंने दूसरा प्रश्न पूछा,पिताजी इतनी डीग्री लेने के बाद आपको नौकरी क्यूं नहीं मिली ? इस बार विष्णु मुद्रा में मुस्कुराते हुए पिताजी ने जवाब दिया," बेटा नौकरी के लिए तो लोग हमारे पीछे-पीछे घूम रहे थे,लेकिन मैंने गांव की सेवा का संकल्प लिया था।इसलिए नौकरी का त्याग कर दिया।" पिताजी के इस जवाब से मै पहले की अपेक्षा और झुक गया,परंतु इस बार शर्म से।मुझे लगा कि थोड़ी सी आय के लिए मैंने नौकरी कर ली और पिताजी ने गांव के लोगों उत्थान के लिए नौकरी का उत्सर्ग कर दिया।
मैं शर्म से झुकने की जगह शर्म से गड़ने वाली स्थिति में हुआ जा रहा था कि राम आसरे ने दहाड़ मारी और अपने पिताजी को बेटा संबोधित करते हुए बोला,"बेटा,कौनऊ और डिग्री का जुगाड़ कर लो ताकि और झुक जाने के बाद उसका भी कारण बता सको,क्योंकि तुम्हें फिर से हौकनें का हमारा मन हो रहा है।"
इतना सुनने के बाद सहसा मेरा झुकाव गायब हो गया।मैंने स्वयं को सीधा,तना हुआ खड़ा पाया।समझ गया कि पिताजी में फल तो लगे हैं पर कड़वे फल।
जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय।