सोमवार, 14 अक्टूबर 2024

2024 का नोबेल पुरस्कार

 2024 का नोबेल पुरस्कार (आधिकारिक नाम: "Sveriges Riksbank Prize in Economic Sciences in Memory of Alfred Nobel") तीन अर्थशास्त्रियों, दारोन अचेमोग्लू, साइमन जॉनसन, और जेम्स ए. रॉबिन्सन, को दिया गया। उन्हें यह पुरस्कार "संस्थाओं के निर्माण और उनकी समृद्धि पर प्रभाव" के लिए किया गया शोध करने पर प्रदान किया गया है।

इन विद्वानों का काम विशेष रूप से यह समझने पर केंद्रित है कि कैसे राजनीतिक और आर्थिक संस्थाएं किसी समाज की समृद्धि को बढ़ावा देती हैं या बाधित करती हैं। उन्होंने ऐतिहासिक और समकालीन दृष्टिकोण से यह दिखाया कि समावेशी संस्थाएं, जो राजनीतिक और आर्थिक भागीदारी को बढ़ावा देती हैं, लंबे समय में आर्थिक विकास और सामाजिक स्थिरता लाती हैं। दूसरी ओर, शोषणकारी संस्थाएं जो एक विशेष समूह के हितों के लिए कार्य करती हैं, समाज के दीर्घकालिक विकास को बाधित करती हैं।

प्रमुख योगदान:

1. उपनिवेशवाद और संस्थाएं: इन शोधकर्ताओं ने दिखाया कि कैसे उपनिवेशवाद के समय बनाए गए संस्थाएं देशों की दीर्घकालिक समृद्धि पर प्रभाव डालती हैं। उदाहरण के लिए, जिन उपनिवेशों में समावेशी संस्थाएं स्थापित की गईं, वे समृद्ध हुए, जबकि जहां शोषणकारी संस्थाएं बनीं, वहां गरीबी और असमानता बढ़ी। इसे उन्होंने reversal of fortune का नाम दिया है, जहां कुछ पूर्व समृद्ध देश उपनिवेश के बाद गरीब हो गए और कुछ गरीब देश समृद्ध हो गए।

2. लोकतंत्र और विकास: उनका शोध दिखाता है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था, जो समावेशी संस्थाओं का समर्थन करती है, बेहतर दीर्घकालिक आर्थिक विकास की संभावना रखती है। जब शासक वर्ग सत्ता में बने रहने के लिए अल्पकालिक लाभों पर ध्यान केंद्रित करते हैं और सुधारों का वादा करते हैं, तो जनता उस पर विश्वास नहीं करती, जिससे सुधार की संभावना कम हो जाती है। हालांकि, जब जनता सत्ता हस्तांतरण की मांग करती है, तब लोकतांत्रिक बदलाव के अवसर बढ़ जाते हैं।

3. सामाजिक संघर्ष: उनके शोध से यह भी पता चलता है कि राजनीतिक और आर्थिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष अक्सर समाजों के विकास का एक अनिवार्य हिस्सा होता है। यह स्वतंत्रता कोई सरल प्रक्रिया नहीं होती, बल्कि यह जनता के संघर्ष और संस्थाओं पर नियंत्रण के द्वारा हासिल की जाती है।

इनके काम ने यह स्पष्ट किया है कि संस्थागत सुधार और समावेशिता दुनिया भर के देशों के लिए जरूरी हैं, खासकर उन देशों के लिए जो विकास की दौड़ में पिछड़ रहे हैं।

यह शोध न केवल शैक्षिक क्षेत्रों में, बल्कि नीति निर्माताओं के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह यह समझने में मदद करता है कि दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता के लिए किस प्रकार की संस्थाएं जरूरी हैं।


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