काशी की यात्रा
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दिनांक 11-10-2024 से 13-10-2024 तक
यात्रा की
शुरुआत: उत्साह से भरा पहला कदम
11 अक्टूबर 2024 की दोपहर, हम सभी प्रयागराज से वाराणसी के लिए यात्रा पर निकले। यह यात्रा मेरे
परिवार के लिए खास थी, क्योंकि यह सिर्फ एक धार्मिक स्थल की
यात्रा नहीं थी, बल्कि एक ऐसा समय था जब हम अपनी दिनचर्या से
कुछ पल निकालकर एक-दूसरे के साथ अच्छे समय बिता सकते थे। मेरी धर्मपत्नी रोमी सिंह
और हमारी दो बेटियां—प्रतिष्ठा सिंह और विजय लक्ष्मी सिंह—सभी यात्रा को लेकर
उत्साहित थीं।
प्रयागराज से वाराणसी
की सड़क यात्रा में प्रकृति का मनोरम दृश्य हमें बार-बार आकर्षित कर रहा था। गुजरते
हुए रास्ते ने एक खास आध्यात्मिक अनुभव दिया। रास्ते में हम हल्की-फुल्की बातें
करते रहे,
और रोमी बच्चों को वाराणसी से जुड़ी कुछ रोचक कहानियां सुनाती रहीं।
बच्चों का उत्साह हर पड़ाव पर बढ़ता जा रहा था, और वे
जगह-जगह रुककर कुछ न कुछ नया देखने की मांग कर रहे थे।
सफर का एक और
महत्वपूर्ण हिस्सा मेरे अभिन्न मित्र विनय प्रताप सिंह, उनकी
धर्मपत्नी मीनू सिंह, पुत्र तनुष सिंह और पुत्री काश्वी सिंह
और सहयोगी पीपी हमारे इस सफर में पहले से ही लंका स्थित Hotel R.S.
Residency में हमारा इंतजार कर रहे थे। उन्होंने पहले से ही होटल R.S.
Residency में हमारे ठहरने का प्रबंध कर रखा था। उनसे मिलने की खुशी
ने हमारी यात्रा को और भी खास बना दिया। उनके साथ बिताए समय की कल्पना ही हमें
उत्साहित कर रही थी।
शाम को जब हम वाराणसी
पहुंचे,
तो शहर की चहल-पहल और पवित्र वातावरण ने हमें पहली ही झलक में
प्रभावित किया। वाराणसी की तंग गलियां, सड़क पर चलते
साधु-संत, और जगह-जगह से गूंजती हुई मंदिरों की घंटियों की
आवाज ने जैसे यात्रा के स्वागत में हमारे मन को आध्यात्मिक शांति से भर दिया।
हमारे पहुंचते ही, होटल
के आरामदायक कमरे में सामान रखकर हम सभी फ्रेश हुए। यात्रा की थकान के बावजूद हम
सभी के चेहरों पर उत्साह बना रहा, क्योंकि आगे के दो दिन
वाराणसी की अद्भुत यात्रा का आनंद लेने वाले थे।
पहला दिन:
वाराणसी की पहली झलक और आध्यात्मिक अनुभव
पहलवान लस्सी
का स्वाद: एक शानदार शुरुआत
फ्रेश होकर सबसे पहले
हम लंका की ओर निकल पड़े,
जहां वाराणसी की प्रसिद्ध "पहलवान लस्सी" का आनंद लेने का
इरादा था। लंका की गलियों में कदम रखते ही शहर की हलचल और धार्मिक आस्था का माहौल
हम पर छा गया। पहलवान लस्सी की दुकान तक पहुँचते ही, वहाँ की
भीड़ और खुशबू ने हम सभी को आकर्षित कर लिया। मोटी मलाई से लिपटी ठंडी-ठंडी लस्सी
का पहला घूंट लेते ही सबके चेहरे खिल उठे। इतनी स्वादिष्ट और ताजगी भरी लस्सी .. मजा
आ गया। बच्चों ने भी इसे खूब एन्जॉय किया, और यह वाराणसी की
खास पहचान बन गई हमारे लिए।
दुर्गा कुंड
मंदिर: शक्ति की पूजा
लस्सी का स्वाद चखने
के बाद हम दुर्गाकुंड मंदिर की ओर चल पड़े। यह मंदिर नवरात्रि के अवसर पर विशेष
रूप से आकर्षक और भक्तिमय होता है। हम सबने माता दुर्गा के दर्शन किए, और
वहाँ की भक्ति के वातावरण में डूब गए। मंदिर के चारों ओर फैले भक्तों की भीड़,
मंदिर की दिव्यता और माँ दुर्गा की प्रतिमा का अद्भुत रूप मन को
शांत और प्रेरित कर रहा था। चूंकि हम सभी नवरात्रि के व्रत में थे, मंदिर की ओर से मिलने वाली आध्यात्मिक ऊर्जा ने हमारे मन और आत्मा को
सुकून दिया।
फलाहार का
आनंद
दर्शन के बाद, हमने
स्ट्रीट फूड की दुकानों से फलाहार पैक कराया। वाराणसी का स्ट्रीट फूड न केवल
स्वादिष्ट था, बल्कि व्रत के दौरान मिलने वाले विभिन्न
विकल्पों ने इसे और खास बना दिया। फलाहार में सिंघाड़े का आटा, आलू की टिक्की, और तरह-तरह की मिठाइयाँ थीं। सब कुछ
लेकर हम होटल लौट आए, जहां हमने परिवार और दोस्तों के साथ
मिलकर स्वादिष्ट फलाहार किया। वाराणसी का यह फलाहार व्रत में भी हमारी भूख को
संतुष्ट करने के साथ-साथ मन को तृप्त कर गया।
रात में खाना खाने के
बाद हमने कुछ समय हंसी-मज़ाक और बातचीत में बिताया। पुरानी यादों को ताजा करते हुए
हमने दोस्तों के साथ अपने अनुभव साझा किए। विनय और मीनू भाभी से मिलने का यह मौका
भी बहुत खास था,
और हम सबने साथ मिलकर खूब हंसी-मजाक किया। बच्चों ने भी आपस में
खेलकर अपने समय का पूरा आनंद उठाया। यह पल हमें और भी करीब लेकर आया और सबके बीच
आत्मीयता का एक नया स्तर महसूस हुआ।
रात होते-होते सभी थक
चुके थे,
इसलिए हास्य-विनोद और मजेदार किस्सों के बाद सभी ने अपने-अपने कमरे
में विश्राम किया। वाराणसी के पहले दिन ने न केवल हमारे मन में उत्साह जगाया,
बल्कि इस महान शहर की धार्मिकता और संस्कृति का अद्भुत अनुभव कराया।
हमने सोचा कि अगले दिन और भी भव्य और खास होने वाला है, क्योंकि
हमें कई और धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों का आनंद लेना था।
इस तरह, वाराणसी
के पहले दिन की यह शुरुआत हमारे लिए सिर्फ एक यात्रा नहीं थी, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव भी थी, जो हमें शहर की
गहराई और उसकी पवित्रता से परिचित करवा रहा था।
दूसरा दिन:
दूसरा दिन:
वाराणसी की धार्मिकता और यादों की ताजगी
12 अक्टूबर 2024 की
सुबह का आगाज़ वाराणसी की अद्वितीय सुंदरता और आस्था में डूबे माहौल के साथ हुआ।
पहले दिन की थकान पूरी तरह मिट चुकी थी, और हम सभी अगले दिन की खोज
में उत्साहित थे। इस दिन का हमारा उद्देश्य था शहर की प्रसिद्ध धार्मिक और
सांस्कृतिक धरोहरों का अनुभव करना। सुबह की ताजगी और वाराणसी के धार्मिक आकर्षणों
ने हमें एक नए उत्साह से भर दिया।
चाची की कचौड़ी और
पहलवान लस्सी: एक शानदार नाश्ता
सुबह तैयार होकर सबसे
पहले हम लंका पर स्थित "चाची की कचौड़ी" की दुकान गए, जो
वाराणसी के नाश्ते के लिए प्रसिद्ध है। इस दुकान की कुरकुरी कचौड़ी और उसके साथ
मिलने वाली गरमा-गरम सब्जी का स्वाद शब्दों में बयाँ करना मुश्किल है। कचौड़ी के
साथ सब्जी का संयोजन इतना लाजवाब था कि हम सभी ने जी भरकर इसका आनंद लिया। इसके
बाद, हम फिर से पहलवान लस्सी की दुकान पहुँचे और वहाँ की
मलाईदार लस्सी का स्वाद लिया। यह दिन की शानदार शुरुआत थी, जिसमें
वाराणसी की खासियत का अनुभव हर घूंट और हर निवाले के साथ हो रहा था।
संकट मोचन मंदिर:
हनुमान जी की शरण में
नाश्ते के बाद, हम
वाराणसी के अत्यंत प्रसिद्ध संकट मोचन मंदिर की ओर चले। हनुमान जी का यह मंदिर न
केवल आस्था का प्रमुख केंद्र है, बल्कि यहाँ कीर्तन की मधुर
ध्वनि में खो जाने का अपना ही अनुभव है। मंदिर के भीतर प्रवेश करते ही भक्तों की
भीड़ और हनुमान जी की दिव्य मूर्ति देखकर मन श्रद्धा से भर गया। दर्शन के बाद हम
कुछ देर वहाँ कीर्तन में बैठे, जहाँ भक्तिमय संगीत और आराधना
ने मन को गहरी शांति दी। यह स्थल वास्तव में एक ऐसा अनुभव था, जो न केवल आत्मा को शांति देता है, बल्कि भक्त को
भगवान से जोड़ देता है।
मानस मंदिर:
रामायण की कला और भव्यता
संकट मोचन मंदिर से
निकलने के बाद हम "मानस मंदिर" पहुंचे। यह मंदिर अपनी विशिष्टता के लिए
जाना जाता है,
क्योंकि यहाँ रामायण के दृश्यों को कलात्मक रूप में चित्रित किया
गया है। इस मंदिर की दीवारों पर रामायण के विभिन्न प्रसंगों को देखकर हम सभी
मंत्रमुग्ध हो गए। हर एक चित्रण इतनी खूबसूरती से किया गया था कि वह सीधे हमारे
दिल में उतर रहा था। वहाँ घूमते हुए रामायण की कहानियाँ जैसे जीवंत हो उठीं। भव्य
और शांतिपूर्ण वातावरण के बीच हमने भगवान राम के दर्शन किए और कुछ समय वहाँ बिताया
और फोटोग्राफी की।
बीएचयू और
विश्वनाथ मंदिर: यादों की ताजगी और आस्था का मिलन
इसके बाद हम पहुंचे
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू), जो मेरे जीवन के सबसे खास
हिस्सों में से एक है। मैंने यहाँ 2003 से 2005 तक परास्नातक की पढ़ाई की थी,
और विश्वविद्यालय में कदम रखते ही पुरानी यादें ताजा हो गईं। बीएचयू
का विशाल कैंपस और उसकी शांति एक बार फिर मुझे मेरे छात्र जीवन में ले गई।
बीएचयू में स्थित नए
काशी विश्वनाथ मंदिर का भी दर्शन किया। यह मंदिर अत्यंत भव्य है। मंदिर में बाबा
विश्वनाथ के दर्शन करते हुए मन एक अद्भुत शांति से भर गया। वहाँ की दिव्यता और
पवित्रता का अनुभव हर भक्त के लिए खास होता है, और यह पल हमारे लिए भी अत्यंत
महत्वपूर्ण था।
चाची के
लौंगलता का स्वाद
विश्वनाथ मंदिर के
दर्शन के बाद हम दोपहर के लंच के लिए वापस लंका पहुंचे। लंच के बाद चाची के यहाँ
लौंगलता का स्वाद चखा। यह एक खास मिठाई है, जो वाराणसी की मिठाइयों में
अपना एक अलग स्थान रखती है। लौंगलता का कुरकुरापन और अंदर की मीठी भराई ने हमारे
भोजन के अनुभव को और भी शानदार बना दिया।
रविदास पार्क
और अलकनंदा क्रूज: गंगा के घाटों का भव्य दर्शन
दोपहर में थोड़ा आराम
करने के बाद,
हम रविदास पार्क होते हुए वाराणसी के प्रसिद्ध घाटों की ओर रवाना
हुए। घाटों की यात्रा का अनुभव तब और खास हो गया जब हमने अलकनंदा क्रूज पर सवार
होकर गंगा के विभिन्न घाटों का दर्शन किया। क्रूज से गंगा का दृश्य अद्भुत
था—प्राचीन घाटों की भव्यता, वहाँ की भीड़-भाड़ और आरती के
दृश्य। गंगा की आरती एक ऐसा अनुभव है, जिसे शब्दों में बयाँ
करना मुश्किल है। आरती के समय गंगा के किनारे जलते हुए दीप और मंत्रों की गूंज ने
मन को एक नई ऊर्जा दी। आरती का मनमोहक दृश्य सदैव के लिए हमारे दिलों में बस गया।
विजया का
जन्मदिन: अविस्मरणीय क्षण
वाराणसी यात्रा के
दूसरे दिन,
जो विजय दशमी का दिन था, हमारे लिए विशेष
महत्व रखता था, क्योंकि इसी दिन मेरी छोटी बेटी विजय लक्ष्मी
का जन्मदिन भी था। यह खास अवसर हमारे पूरे परिवार और मित्रों के साथ मनाने का एक
सुनहरा मौका था।
दिनभर के घुमने-फिरने
और गंगा आरती के दिव्य दर्शन के बाद, विनय और मीनू भाभी ने विजय
लक्ष्मी के जन्मदिन को और भी खास बनाने के लिए रविदास पार्क के पास एक खूबसूरत
कैफे में पार्टी का आयोजन किया। पार्टी के लिए कैफे का वातावरण बहुत ही आकर्षक और
शांत था, और गंगा के किनारे होने की वजह से माहौल में एक अलग
ही ऊर्जा थी।
जैसे ही हम कैफे
पहुंचे,
मेरी बेटी की आँखों में एक अलग चमक थी। कैफे को खूबसूरत ढंग से
सजाया गया था, सजावट देखकर बच्चे बेहद खुश थे। विनय और मीनू
भाभी ने केक का खास इंतजाम किया था, जो विनय के पसंदीदा वेलवेट
फ्लेवर का था।
जैसे ही केक कटने का
समय आया,
सभी लोग तालियों की गूंज के साथ गाना गाने लगे, "हैप्पी बर्थडे टू यू..."। विजय लक्ष्मी की खुशी देखते ही बन रही थी।
उसने केक काटा और सबसे पहले काशवी को खिलाया, फिर हम सब ने आनंद
से केक खाया। इस पल ने सभी के चेहरों पर मुस्कान ला दी।केक के बाद सब लोगों ने बेबीकॉर्न का स्वाद लिया जो कि कैफे का सिग्नेचर आइटम था। वाकई बड़ा मजेदार था।
खास बात यह थी कि
जन्मदिन की पार्टी में मौजूद सभी लोग, खासकर हमारे परिवार और दोस्त,
उस घड़ी को पूरी तरह से महसूस कर रहे थे। इस आयोजन ने हमें और भी
करीब ला दिया। विनय और मीनू भाभी का यह स्नेहपूर्ण प्रयास मेरे लिए बहुत खास था और
विजय लक्ष्मी के लिए यह एक यादगार जन्मदिन बन गया।
बाटी-चोखा का
स्वाद: वाराणसी का अंतिम जायका
रात को थकान के
बावजूद हम वाराणसी की प्रसिद्ध बाटी-चोखा खाने के लिए निकले। विनय और मैं
"बनारस बाटी-चोखा रेस्टोरेंट" गए और वहाँ से गरमा-गरम बाटी-चोखा लाए।
बनारस की इस खास डिश ने हमारी यात्रा के स्वाद को और भी गहरा कर दिया। गरमा-गरम
बाटी, चोखा, दाल, चावल और ढेर सारी चटनी के साथ खीर .. पूंछों मत मजा अ गया।
दिनभर की थकान के बाद
हम सभी ने हंसी-मजाक और बातचीत के साथ रात बिताई। यह दिन वाराणसी की धार्मिकता, उसकी
भव्यता और उसकी संस्कृति को करीब से जानने का था। विजय लक्ष्मी का जन्मदिन और गंगा
आरती के दिव्य अनुभव ने इस दिन को हमारे जीवन का एक खास हिस्सा बना दिया।
तीसरा दिन:
तीसरा दिन:
वाराणसी की विदाई के साथ आध्यात्मिक अनुभवों की स्मृतियाँ
13 अक्टूबर 2024 का
दिन वाराणसी यात्रा का आखिरी दिन था। इस दिन को खास बनाने और वाराणसी की
आध्यात्मिकता को फिर से महसूस करने के लिए हम सभी पूरी तरह तैयार थे। दो दिनों की
यात्रा के बाद,
अब इस पवित्र नगरी से विदा लेने का समय आ गया था, लेकिन तीसरे दिन के कार्यक्रम में अभी भी वाराणसी की कुछ विशेषताओं का
आनंद लेना बाकी था। इस दिन का हमारा उद्देश्य वाराणसी की धार्मिकता को और गहराई से
अनुभव करना था और यात्रा का समापन एक शानदार अंदाज में करना था।
चाची की
कचौड़ी: वाराणसी के स्वाद का अंतिम लुत्फ
सुबह की शुरुआत फिर
से वाराणसी के सबसे लोकप्रिय नाश्ते "चाची की कचौड़ी" के साथ की गई।
कचौड़ी और सब्जी का स्वाद उतना ही अद्भुत था जितना पहले दिन था।। हम सभी ने जी
भरकर नाश्ता किया और वाराणसी के इस खास व्यंजन को अपनी यादों में बसा लिया।
काशी
विश्वनाथ मंदिर: बाबा विश्वनाथ का भव्य दर्शन
नाश्ते के बाद हम
सीधे वाराणसी के सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख धार्मिक स्थल "काशी विश्वनाथ
मंदिर" गए। बाबा विश्वनाथ का यह मंदिर हिन्दू धर्म का प्रमुख तीर्थ स्थान है, और
यहाँ जाकर हर व्यक्ति के मन में एक अद्भुत शांति और ऊर्जा का संचार होता है।
मंदिर की ओर बढ़ते
हुए हम गंगा नदी के पास से गुजरते रहे, और वहाँ की भीड़ में
श्रद्धालुओं की आस्था और भक्ति साफ नजर आ रही थी। जब हम मुख्य गर्भगृह में पहुंचे
और बाबा विश्वनाथ के दर्शन किए, तो मन पूरी तरह से भगवान शिव
की भक्ति में डूब गया। भगवान शिव की प्रतिमा और मंदिर के वातावरण में फैली
आध्यात्मिकता हमें एक अलग ही अनुभूति दे रही थी। हमने विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की
और बाबा से आशीर्वाद प्राप्त किया। यह अनुभव न केवल आध्यात्मिक था, बल्कि हमें आंतरिक शांति भी प्रदान कर रहा था।
ठंडई का
स्वाद: वाराणसी की मिठास
काशी विश्वनाथ मंदिर
के दर्शन के बाद,
हमने वाराणसी की एक और प्रसिद्ध चीज का स्वाद लेने का निर्णय
लिया—ठंडई। वाराणसी की ठंडई, खासकर भांग के साथ, बहुत प्रसिद्ध है, लेकिन हमने बिना भांग वाली ठंडई
का ही आनंद लिया। ठंडई का ठंडा और मीठा स्वाद, ऊपर से पिस्ता
और बादाम से सजावट, हमारी थकान को मिटाने के लिए काफी था।
ठंडई पीते समय वाराणसी की सड़कों की हलचल और वहाँ के धार्मिक वातावरण का आनंद लेना
एक अनूठा अनुभव था।
ठंडई का आनंद लेने के
बाद हम वापस होटल पहुँचे। अब विदा लेने का समय आ चुका था और हमें वाराणसी की इस
अविस्मरणीय यात्रा की सुखद यादों को समेटकर घर लौटना था। होटल में पहुँचकर हमने
अपना सामान पैक किया। पैकिंग करते समय, हम सभी बीते दो दिनों की
यादों को ताजा कर रहे थे। हर पल की चर्चा करते हुए, हमने तय
किया कि अगली बार वाराणसी की यात्रा को और भी अधिक विस्तार से करेंगे और उन
स्थानों पर भी जाएंगे, जहाँ इस बार नहीं जा सके।
होटल से निकलने के बाद, विनय और उनका परिवार हमें बस स्टॉप तक छोड़ने आए। विदाई का समय हमेशा
भावुक होता है, और इस बार भी हम सभी के दिल भारी थे। विनय और
मीनू भाभी के साथ बिताया हुआ समय हमारे लिए यादगार था। उन्होंने हमारी यात्रा को
और भी खास बना दिया था। हम सभी ने एक-दूसरे से गले मिलकर विदा ली और यह वादा किया
कि अगली बार फिर मिलेंगे और किसी नए पर्यटन स्थल पर साथ यात्रा करेंगे।
वाराणसी की इस यात्रा
ने न केवल हमें धार्मिकता और आस्था के अद्भुत अनुभव दिए, बल्कि
हमारे परिवार और मित्रों के साथ बिताए गए इन तीन दिनों ने हमारे रिश्तों को और भी
मजबूत किया। इस यात्रा की हर एक याद हमारे दिलों में हमेशा के लिए बस गई है,
और यह अनुभव हमारे जीवन का अविस्मरणीय हिस्सा बन गया है।
संकट मोचन का कीर्तन, अलकनंदा
क्रूज से घाटों का दर्शन और विजय दशमी के दिन मेरी बेटी का जन्मदिन मनाना, ये सभी पल इस यात्रा को हमेशा यादगार बनाएंगे।
मैं अपने मित्र विनय
प्रताप सिंह,
मीनू भाभी, तनुष, काश्वी
और पीपी का तहे दिल से धन्यवाद करता हूं, जिन्होंने हमारी इस
यात्रा को अविस्मरणीय बनाने में साथ दिया।
जय हो बाबा
काशी विश्वनाथ की ... हर हर महादेव!