बुधवार, 6 नवंबर 2019

आदत

 
      जीवन में आदतों का बड़ा योगदान है। व्यक्ति और आदतों का अन्योन्याश्रित संबंध है। व्यक्ति आदत बनाता है और आदतें व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं।आदतें समाज के परिवेश पर भी बहुत कुछ निर्भर करती हैं।
         आदतें दों प्रकार की होती हैं-शुभ आदतें और अशुभ आदतें। शुभ आदतें शान्त और स्थिर प्रकृति की होती हैं। इस स्वभाव के कारण गतिशील समाज में शुभ आदतों को सुपात्र कम ही मिल पाते हैं। अशुभ आदते अस्थिर एवं चंचल प्रकृति की होती हैं तथा इनमें आकर्षण भी प्रबल होता है। यही कारण है कि इनका प्रसार, पहुँच अधिक लोंगों तक है। पूर्ण शुभता का आकांक्षी प्रत्येक व्यक्ति है तथा अशुभ आदतों के त्याज्य के लिए प्रयासरत है।
       शुभ अशुभ आदतें हमेशा व्यक्ति की ओर प्रवाहित होती रहती हैं। व्यक्ति अपने संकल्प के अनुसार जाने अनजाने आदतों को प्रवेश की अनुमति देता रहता है।ये आदते हमारे भीतर संचित और संगठित होती रहती हैं। धीरे धीरे ये शक्तिशाली होकर हमारा व्यक्तिव हो जाती हैं। ये इतना शक्तिशाली हो जाती हैं कि हम इन्हीं से पहचाने जाने लगते हैं।अगर ईमानदारी आदत हो गई तो यह कहा जयेगा की बड़ा ईमानदार आदमी है, यदि बेईमानी की आदत हो गई तो कहा जायेगा कि बड़ा बेईमान आदमी है।
       सफलता असफलता और कुछ नहीं बस आदते हैं। जिसे सफलता कहा जाता है, उसे प्राप्त करने की एक विधि होगी, एक प्रक्रिया होगी, उसका अपना एक स्वभाव होगा। बस इसी के अनुरूप जिसकी आदतें हो गई वो सफल बाकी सब असफल। यदि किसी को क्रिकेट में एक अच्छा बैट्समैन बनना है तो उसे बैटिंग का अभ्यास करने की आदत डालनी होगी, अगर वह बॉलिंग का अभ्यास करेगा तो एक अच्छा बैट्समैन कभी नहीं बन सकता।
         सोचिये.......कहीं आप बैट्समैन का लक्ष्य करके बॉलिंग का अभ्यास तो नहीं कर रहें हैं।

       
       
          

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