शनिवार, 9 जनवरी 2021

जे.के.मेहता के आर्थिक विचार

        जे.के.मेहता के आर्थिक विचार


    जे के मेहता भारतीय चिंतन परंपरा से गहरे रूप से प्रभावित थे। विशेष रुप से गांधी जी का उन पर बहुत अधिक प्रभाव था।इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन करने के पश्चात वहीं पर इन्होंने अध्यापन का कार्य भी प्रारंभ किया। अर्थशास्त्र के क्षेत्र में किए गए विशेष योगदान को देखते हुए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने इन्हें प्रोफेसर की उपाधि से नवाजा।

        जे के मेहता के प्रमुख आर्थिक विचार निम्न है-

अर्थशास्त्र की परिभाषा-जे के मेहता द्वारा दी गई अर्थशास्त्र की परिभाषा को 'आवश्यकता विहीनता' के नाम से जाना जाता है। आपके अनुसार,"अर्थशास्त्र का विज्ञान है जो माननीय आचरण का इच्छा रहित अवस्था में पहुंचने के एक साधन के रूप में अध्ययन करता है।"

   जे के मेहता संतुष्टि और सुख में अंतर करते हैं। उनके अनुसार संतुष्टि वस्तुओं के उपभोग से प्राप्त होती है,जबकि सुख आवश्यकताएं को कम करने से प्राप्त होती है। व्यक्ति की जितनी ही आवश्यकता कम होगी वह उतना ही वह सुखी होगा।अधिकतम सुख इच्छा रहित अवस्था में ही निहित है। व्यक्ति की प्रत्येक इच्छा चुनाव की समस्या उत्पन्न करता है,क्योंकि इच्छाएं अनंत हैं और साधन सीमित। इस प्रकार इस चुनाव की समस्या से व्यक्ति का मानसिक संतुलन असंतुलित होता है और वह सुख से वंचित हो जाता है।

प्रतिनिधि फर्म का विचार-

    प्रतिनिधि फार्म का सर्वप्रथम विचार मार्शल द्वारा दिया गया,परंतु जेके मेहता ने मार्शल द्वारा दी गई परिभाषा में संशोधन किया। मेहता के अनुसार," प्रतिनिधि फर्म हुआ फर्म है जो उद्योग के साथ साथ अनुरूपी विस्तार अथवा संकुचन करने की प्रवृत्ति दिखाती है।"प्रतिनिधि फार्म के मूल्य निर्धारण में पूर्ति मूल्य की प्रत्यक्ष भूमिका मार्शल स्वीकार करते थे,जबकि मेहता का मानना था कि पूर्ति मूल्य परोक्ष रूप से मूल्य निर्धारण में शामिल होता है। मार्शल का मानना था कि प्रतिनिधि फार्म ना तो घटती है ना बढ़ती है जबकि मेहता के अनुसार प्रतिनिधि फर्म उद्योग के साथ-साथ संकुचन एवं विस्तार करती है।

लाभ का सिद्धांत-

       मेहता का मानना है कि व्यापार अनिश्चितताओं का खेल है।व्यापार में बहुत से जोखिम होते हैं।लाभ इन्हीं जोखिमों को वहन करने का पुरस्कार है।लाभ कोई बचत नहीं है, यह मजदूरी के समान कार्य करने पर ही प्राप्त होता है और यह धनात्मक होता है।

उपभोक्ता की बचत-

      उपभोक्ता की बचत की अवधारणा सर्वप्रथम द्यूपिट ने दी,जिसे बाद में मार्शल ने व्याख्यायित किया। मेहता ने उपभोक्ता की बचत की अवधारणा में संशोधन किया उनके अनुसार मिलने वाली उपयोगिता और दिए गए मूल्य का अंतर नहीं अपितु प्राप्त उपयोगिता और किए गए त्याग का अंतर उपभोक्ता की बचत है।आप इसे उपभोक्ता का लगान भी कहते हैं। मेहता मार्शल से इस बात से सहमत दिखते हैं कि उपयोगिता मापनी य है।वे हिक्स और एलेन आदि अर्थशास्त्रियों आलोचना करते हैं जिनका यह मानना था कि उपयोगिता की माप नहीं की जा सकती।

       मेहता के अनुसार जब तापक्रम आदि अमूर्त चीजों की माप की जा सकती है तो उपयोगिता की क्यों नहीं। वस्तु को दिया जाने वाला मूल्य ही उपयोगिता की माप है।

साम्य का विचार -

      मेहता साम्य को दो भागों में विभाजित करते हैं - स्थिर साम्य प्रवैगिक साम्य। साम्य के लिए समय नामक तत्व आवश्यक है। स्थिर साम्य समय अवधि के बाहर भी बना रहता है जबकि प्रावैगिक साम्य समयावधि के बाहर भंग हो जाता है।

बाजार संबंधी विचार -

     मेहता के अनुसार,"बाजार वह दशा है जिसमें कोई वस्तु बिक्री हेतु उस स्थान पर लाई जाती है जहां उसकी मांग होती है।"

       इस प्रकार हम देखते हैं कि अर्थशास्त्र के विभिन्न पक्षों पर मेहता द्वारा अपने सारगर्भित विचार प्रकट किए गए। यद्यपि अर्थशास्त्र की आवश्यकता विहीनता नामक परिभाषा की इस आधार पर आलोचना की जाती है कि अर्थशास्त्र से यदि उपभोग निकाल दिया जाए तो पूरा अर्थशास्त्र ही धराशाई हो जाएगा। इच्छा विहीनीता की स्थिति में आर्थिक क्रियाएं समाप्त हो जाएंगी। समग्रता की दृष्टि से देखें तो यह आलोचनाएं निराधार हैं।मेहता की जो दृष्टि थी वह समग्रता की थी।अत्यंत भोग की अवस्था ने आज कई प्रकार की सामाजिक,आर्थिक एवं पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न की हैं,जिससे पूरा विश्व चिंतित दिखाई देता है ।कोरोना काल ने हमारे सारे विकास को बेमानी कर दिया है।मेहता के विचारों को इसी परिप्रेक्ष्य में देखे जाने की जरूरत है।

     


     

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