शुक्रवार, 26 जुलाई 2024

वाणिज्यवाद का व्यापार सिद्धांत

 **व्यापार सिद्धांत के रूप में वाणिज्यवाद** एक आर्थिक सिद्धांत और व्यवहार है जो 16वीं से लेकर 18वीं शताब्दी के अंत तक पश्चिमी यूरोपीय आर्थिक नीतियों पर हावी रहा। यहाँ इस सिद्धांत और इसके निहितार्थ का विस्तृत विवरण दिया गया है:


### वाणिज्यवाद के मुख्य सिद्धांत


1. **धन संचय:**

   - वाणिज्यवादियों का मानना था कि किसी राष्ट्र की धन और शक्ति को बढ़ाने के लिए निर्यात बढ़ाना और सोने-चाँदी जैसे कीमती धातुओं को इकट्ठा करना आवश्यक है। इसे एक शून्य-योग खेल के रूप में देखा गया, जहां एक राष्ट्र का लाभ दूसरे का नुकसान था।


2. **सकारात्मक व्यापार संतुलन:**

   - वाणिज्यवाद का एक प्रमुख सिद्धांत व्यापार का सकारात्मक संतुलन प्राप्त करना था, जिसमें निर्यात आयात से अधिक हो। इससे सोने और चाँदी के रूप में धन की शुद्ध प्रवाह सुनिश्चित होती थी।


3. **सरकारी हस्तक्षेप:**

   - वाणिज्यवाद आर्थिक पर नियंत्रण के लिए मजबूत सरकारी हस्तक्षेप का समर्थन करता था। सरकारों को घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए टैरिफ, सब्सिडी, और एकाधिकार के माध्यम से अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने की उम्मीद थी।


4. **औपनिवेशिक विस्तार:**

   - उपनिवेश वाणिज्यवाद के तहत कच्चे माल के स्रोत और तैयार वस्तुओं के बाजार के रूप में आवश्यक माने जाते थे। उपनिवेशों को निर्माण करने से रोका जाता था और उनसे उम्मीद की जाती थी कि वे केवल अपने मातृ देश के साथ व्यापार करें।


5. **राष्ट्रीयता:**

   - वाणिज्यवाद ने राष्ट्रीय हितों पर जोर दिया और व्यक्तिगत हितों की तुलना में राष्ट्र-राज्य के आर्थिक हितों को प्राथमिकता दी। आर्थिक नीतियों को राष्ट्र और उसकी शक्ति को अन्य देशों के मुकाबले मजबूत बनाने के लिए तैयार किया गया था।


### नीतियाँ और प्रथाएँ


- **आयात पर उच्च शुल्क:** आयात को हतोत्साहित करने और घरेलू उद्योगों की रक्षा करने के लिए विदेशी वस्तुओं पर उच्च शुल्क लगाए गए।

  

- **निर्यात सब्सिडी:** सरकारों ने निर्यात को बढ़ावा देने के लिए घरेलू उद्योगों को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किए।


- **एकाधिकार और विशिष्ट व्यापार अधिकार:** सरकारें अक्सर कुछ कंपनियों को एकाधिकार प्रदान करती थीं, विशेष रूप से उपनिवेशों के साथ व्यापार में, आर्थिक गतिविधियों को नियंत्रित करने और लाभ को अधिकतम करने के लिए।


- **नेविगेशन अधिनियम:** ऐसे कानून लागू किए गए ताकि व्यापार से मातृ देश को लाभ हो। उदाहरण के लिए, इंग्लैंड में नेविगेशन अधिनियम ने इंग्लैंड या उसके उपनिवेशों में आयात की गई वस्तुओं को अंग्रेजी जहाजों पर ले जाने की आवश्यकता की।


### वाणिज्यवाद की आलोचनाएँ


- **अक्षमता:** वाणिज्यवाद को व्यापार को प्रतिबंधित करने और एकाधिकार को बढ़ावा देने के लिए आलोचना की गई, जिससे अक्षमताएँ पैदा होती हैं।

  

- **मुद्रास्फीति:** उपनिवेशों से सोने और चाँदी की आमद से मुद्रास्फीति और आर्थिक अस्थिरता हो सकती है।


- **नवाचार में कमी:** संरक्षणवादी नीतियों ने अक्सर नवाचार और प्रतिस्पर्धा को दबा दिया, जिससे लंबे समय में आर्थिक विकास कम हो गया।


- **उपनिवेशों का शोषण:** वाणिज्यवाद प्रणाली ने उपनिवेशों का शोषण किया, क्योंकि उनसे उम्मीद की जाती थी कि वे मातृ देश के आर्थिक हितों की सेवा करेंगे।


### वाणिज्यवाद से दूर संक्रमण


वाणिज्यवाद अंततः शास्त्रीय आर्थिक सिद्धांतों के आगे झुक गया, विशेष रूप से एडम स्मिथ द्वारा उनके महत्वपूर्ण कार्य, **"द वेल्थ ऑफ नेशन्स" (1776)** में। स्मिथ ने मुक्त व्यापार, प्रतिस्पर्धा और अदृश्य हाथ के विचार के लिए तर्क दिया, जो इस विचार को बढ़ावा देता है कि स्व-हित का अनुसरण करने वाले व्यक्ति पूरे समाज को लाभ पहुंचा सकते हैं।


### वाणिज्यवाद की विरासत


हालांकि वाणिज्यवाद अब अपने मूल रूप में प्रचलित नहीं है, इसके कुछ विचार, जैसे संरक्षणवाद और सरकारी हस्तक्षेप, अभी भी आधुनिक आर्थिक नीतियों को प्रभावित करते हैं। इसने आधुनिक आर्थिक विचार और नीति-निर्माण के विकास के लिए आधार तैयार किया, जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की जटिलताओं और आर्थिक विकास में सरकार की भूमिका को उजागर करता है।


### निष्कर्ष


वाणिज्यवाद ने प्रारंभिक आधुनिक दुनिया के आर्थिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राष्ट्रीय धन संचय और सरकारी हस्तक्षेप पर ध्यान केंद्रित करके, इसने आधुनिक आर्थिक नीतियों और सिद्धांतों के विकास के लिए आधार तैयार किया। इसके पतन के बावजूद, इसके प्रभाव को अभी भी कुछ समकालीन आर्थिक प्रथाओं और बहसों में देखा जा सकता है।

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