बुधवार, 24 सितंबर 2025

भारत का विदेशी व्यापार : मूल्य, संरचना और दिशा

                               भारत का विदेशी व्यापार : मूल्य, संरचना और दिशा 

 

1. परिचय 

 

प्राचीन काल से ही भारत एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र रहा है, जो अपने मसालों, वस्त्रों और धातुओं के लिए वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध थास्वतंत्रता के बाद, भारत का विदेशी व्यापार मुख्य रूप से प्राथमिक उत्पादों के निर्यात और औद्योगिक विकास के लिए आवश्यक पूंजीगत वस्तुओं और कच्चे माल के आयात पर केंद्रित थापिछले सात दशकों में, भारत के विदेशी व्यापार की संरचना में एक पूर्ण परिवर्तन आया हैदेश ने धीरे-धीरे प्राथमिक उत्पादों के निर्यातक से एक प्रमुख विनिर्मित वस्तुओं और सेवाओं के निर्यातक के रूप में अपनी पहचान बनाई है।    

यह अध्याय भारत के विदेशी व्यापार की वर्तमान स्थिति का एक व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत करती है, जो तीन मुख्य आयामों पर केंद्रित है: मूल्य, संरचना, और दिशायह विश्लेषण नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों और संबंधित आर्थिक तथा भू-राजनीतिक कारकों को ध्यान में रखकर किया गया है, ताकि भारत के विदेशी व्यापार के समग्र परिदृश्य को एक गहन और प्रामाणिक दृष्टिकोण से समझा जा सके 

 

2. भारतीय विदेशी व्यापार का मूल्य 

 

भारत के विदेशी व्यापार ने वित्त वर्ष 2024-25 में एक उल्लेखनीय प्रदर्शन किया है, जो देश की आर्थिक वृद्धि के लिए एक सकारात्मक संकेतक हैइस अवधि के दौरान, भारत का कुल निर्यात (वस्तु और सेवा) रिकॉर्ड 824.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गयायह आंकड़ा पिछले वर्ष (वित्त वर्ष 2023-24) के 778.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में 6.01% की महत्वपूर्ण वृद्धि को दर्शाता है, जो देश के व्यापारिक विकास पथ में एक नया कीर्तिमान हैकुल आयात 915.19 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहने का अनुमान है    

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि विभिन्न सरकारी स्रोतों से प्राप्त निर्यात के आंकड़ों में कभी-कभी मामूली भिन्नताएँ देखी जाती हैं ये मामूली अंतर समग्र सकारात्मक प्रवृत्ति को प्रभावित नहीं करते हैं।  

   

वस्तु व्यापार बनाम सेवा व्यापार 

 

हाल के वर्षों में, सेवा क्षेत्र भारत के विदेशी व्यापार का एक महत्वपूर्ण और लगातार बढ़ता हुआ हिस्सा बन गया हैजहाँ वस्तु व्यापार में उतार-चढ़ाव देखा गया है, वहीं सेवा निर्यात ने अधिक मजबूत और स्थिर वृद्धि दर्ज की हैवित्त वर्ष 2024-25 में, भारत का सेवा व्यापार अधिशेष 188.57 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जो वित्त वर्ष 2023-24 के 162.75 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हैयह अधिशेष भारत के बढ़ते व्यापार घाटे को संतुलित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।    

सेवा क्षेत्र ने पिछले 18 वर्षों में वैश्विक सेवा निर्यात में भारत के योगदान को दोगुना से अधिक कर दिया है, जो 2005 में 2% से बढ़कर 2023 में 4.6% हो गया हैयह वृद्धि विशेष रूप से व्यापार परामर्श और वित्तीय सेवाओं जैसे क्षेत्रों में देखी गई हैयह प्रवृत्ति दर्शाती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था, जो पारंपरिक रूप से कृषि और विनिर्माण पर केंद्रित थी, अब सूचना प्रौद्योगिकी, वित्त और अन्य उच्च-मूल्य वाली सेवाओं पर आधारित एक "ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था" की ओर तेजी से बढ़ रही हैसेवा क्षेत्र का यह मजबूत प्रदर्शन वैश्विक अनिश्चितताओं के प्रति भारत की अर्थव्यवस्था को अधिक लचीला बनाता है।   

  

भारत का व्यापार संतुलन: घाटे और अधिशेष की गतिशीलता 

 

भारत के लिए व्यापार घाटा एक निरंतर चुनौती बनी हुई हैवित्त वर्ष 2024 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में, व्यापार घाटा 62.26 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जो पिछले वर्ष की समान अवधि के 56.16 बिलियन डॉलर से अधिक है 

   

3. भारतीय विदेशी व्यापार की संरचना: क्षेत्र-वार और उत्पाद-वार विश्लेषण 

 

प्रमुख निर्यात बास्केट में संरचनात्मक बदलाव 

 

भारत के निर्यात बास्केट में पिछले कुछ वर्षों में एक महत्वपूर्ण संरचनात्मक बदलाव देखा गया हैपारंपरिक रूप से, भारत के शीर्ष निर्यात में पेट्रोलियम उत्पाद, रत्न और आभूषण, इंजीनियरिंग सामान और वस्त्र शामिल रहे हैंहालांकि, हाल ही में उच्च मूल्य वाले विनिर्मित उत्पादों ने एक मजबूत वृद्धि दर्ज की हैइस बदलाव का सबसे प्रमुख उदाहरण मोबाइल फोन का निर्यात है, जो 2014-15 में 0.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2023-24 में 15.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया हैइसी तरह, फार्मास्युटिकल निर्यात भी वित्त वर्ष 2023-24 में बढ़कर 27.85 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गयाये उपलब्धियाँ आकस्मिक नहीं हैंवे 'मेक इन इंडिया' और उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) जैसी सरकार की नीतियों का प्रत्यक्ष परिणाम हैं, जिन्होंने घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा दिया हैइन पहलों नेकेवल आयात पर निर्भरता कम की है, बल्कि उच्च मूल्य-वर्धित उत्पादों के निर्यात को भी प्रोत्साहित किया हैइसके अलावा, केला, घी, फर्नीचर, और सोलर पीवी मॉड्यूल जैसे नए उत्पादों के निर्यात में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जिससे भारत की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पकड़ मजबूत हुई है ।    

   

प्रमुख आयात बास्केट और पेट्रोलियम विरोधाभास 

 

भारत का आयात बास्केट मुख्य रूप से कच्चे तेल, पूंजीगत वस्तुओं (मशीनरी), इलेक्ट्रॉनिक सामान, रसायन और रत्न एवं आभूषणों पर हावी हैभारत अपनी कच्चे तेल की मांग का लगभग 80% विदेशों से आयात करता हैयह एक दिलचस्प विरोधाभास प्रस्तुत करता है कि भारत कच्चे तेल का एक बड़ा आयातक होने के बावजूद परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों का एक प्रमुख निर्यातक भी हैइसका कारण देश की मजबूत और बढ़ती पेट्रोलियम शोधन क्षमता में निहित हैभारत में वर्तमान रिफाइनिंग क्षमता 256.8 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष (एमएमटीपीए) है, जबकि घरेलू खपत 233.3 एमएमटीपीए है, जो खपत से अधिक उत्पादन क्षमता को दर्शाता हैभारत कच्चे तेल को आयात करता है, उसे अपनी परिष्कृत रिफाइनरियों में संसाधित करता है, और फिर पेट्रोल, डीजल, और जेट ईंधन जैसे मूल्य-वर्धित उत्पादों को वैश्विक बाजारों में निर्यात करता हैयह रणनीति भारत को श्रम, पूंजी और महत्वपूर्ण लाभ मार्जिन अर्जित करने में सक्षम बनाती है, जिससे यह व्यापार का एक महत्वपूर्ण आर्थिक चालक बन जाता है ।    

   

 

4. विदेशी व्यापार की दिशा: प्रमुख व्यापारिक साझेदार और रुझान 

 

अमेरिका बनाम चीन: शीर्ष व्यापारिक साझेदार और व्यापार घाटे की गतिशीलता 

 

वित्त वर्ष 2024-25 में, अमेरिका लगातार चौथे वर्ष भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना रहाइस अवधि के दौरान दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 131.84 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गयावहीं दूसरी ओर, चीन के साथ भारत का व्यापारिक संबंध एक बढ़ती हुई चिंता का विषय बना हुआ हैवित्त वर्ष 2024-25 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा बढ़कर 99.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया हैइस बढ़ते घाटे का मुख्य कारण इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं, इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी, सोलर सेल जैसे उच्च-प्रौद्योगिकी उत्पादों और टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं का भारी आयात हैयह व्यापारिक असमानता केवल एक आर्थिक समस्या नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक चिंता भी हैयह चीनी उत्पादों पर भारत की संरचनात्मक निर्भरता को दर्शाता है, जिससे घरेलू उद्योगों (विशेषकर इस्पात, रसायन और इलेक्ट्रॉनिक्स) को नुकसान होता है और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जोखिम उत्पन्न हो सकता है, विशेषकर सीमा विवादों या आपात स्थितियों के दौरान 

    

नीदरलैंड का उभरना: यूरोप का प्रवेश द्वार 

 

वित्त वर्ष 2023-24 में, नीदरलैंड ने यूके, हांगकांग और जर्मनी जैसे प्रमुख गंतव्यों को पीछे छोड़ते हुए भारत का तीसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य बनकर एक उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की हैनीदरलैंड को भारत का निर्यात 2023-24 में लगभग 3.5% बढ़कर 22.36 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जिसमें परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पाद, रसायन और फार्मास्यूटिकल्स प्रमुख निर्यात मदें थीं ।    

नीदरलैंड के निर्यात में यह वृद्धि केवल द्विपक्षीय व्यापार संबंधों का परिणाम नहीं है, बल्कि यह वैश्विक भू-राजनीतिक बदलावों का एक सीधा परिणाम हैरूस-यूक्रेन संघर्ष के बाद, यूरोप में ऊर्जा सुरक्षा के लिए नए स्रोतों की तलाश की गईभारत ने अपनी मजबूत पेट्रोलियम शोधन क्षमता का लाभ उठाते हुए नीदरलैंड को परिष्कृत ईंधन का निर्यात बढ़ाया, जो यूरोपीय संघ में प्रवेश का एक प्रमुख केंद्र हैनीदरलैंड के कुशल बंदरगाह और मजबूत लॉजिस्टिक्स इंफ्रास्ट्रक्चर इसे यूरोप के लिए एक प्रवेश द्वार बनाते हैं, जिससे यह भारत के लिए एक रणनीतिक निर्यात केंद्र बन गया है 。    

 

5. विदेशी व्यापार पर प्रभाव डालने वाले प्रमुख कारक 

 

सरकारी नीतियाँ और पहलें 

 

भारत सरकार की रणनीतिक नीतियों ने विदेशी व्यापार को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 31 मार्च, 2023 को जारी नवीनतम विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) का लक्ष्य 2030 तक भारत के कुल निर्यात को 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाना है, जिसमें वस्तु और सेवा क्षेत्रों का समान योगदान होगायह नीति ई-कॉमर्स निर्यात को सुगम बनाने पर विशेष ध्यान केंद्रित करती है, जिसका लक्ष्य 2030 तक 200 से 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात प्राप्त करना हैइसमें 'जिलों को निर्यात हब' के रूप में विकसित करने की पहल भी शामिल है, जिससे स्थानीय उत्पादों को वैश्विक बाजार तक पहुँचाया जा सके ।    

'मेक इन इंडिया' और उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाएं इस सकारात्मक बदलाव के प्रमुख चालक हैं। 'मेक इन इंडिया' ने 2014-2024 के दौरान भारत में 667.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का संचयी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आकर्षित किया है, जो पिछले दशक की तुलना में 119% अधिक हैइसी तरह, पीएलआई योजनाओं के परिणामस्वरूप 1.32 लाख करोड़ रुपये (16 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का निवेश हुआ है और 10.90 लाख करोड़ रुपये (130 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का अतिरिक्त विनिर्माण उत्पादन हुआ है, जिसने इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मा जैसे क्षेत्रों में निर्यात में वृद्धि को गति दी है 

    

वैश्विक आर्थिक और भू-राजनीतिक चुनौतियाँ 

 

वैश्विक अर्थव्यवस्था में उत्पन्न होने वाली चुनौतियाँ भारत के विदेशी व्यापार पर सीधा प्रभाव डालती हैं 

 

  1. लाल सागर संकट: वित्त वर्ष 2024 में लाल सागर के आसपास के भू-राजनीतिक संकटों ने भारतीय व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव डालाइन व्यवधानों के कारण जनवरी, फरवरी और मार्च 2024 के दौरान निर्यात प्रभावित हुआअगस्त 2024 में भारत के समग्र निर्यात में 9.3% की महत्वपूर्ण गिरावट आई, जिसका मुख्य कारण पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात में 37.56% की तेज गिरावट थीयह घटना दर्शाती है कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में किसी भी व्यवधान का भारत के व्यापारिक प्रदर्शन पर तत्काल और गहरा प्रभाव पड़ सकता है।    

  1. रूस-यूक्रेन युद्ध और वैश्विक मुद्रास्फीति: इस युद्ध के कारण वैश्विक कमोडिटी की कीमतों में तेज वृद्धि हुईभारत को सबसे अधिक सनफ्लावर खाद्य तेल का आयात यूक्रेन और रूस से प्राप्त होता हैइस आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान ने खाद्य तेलों की कीमतें बढ़ा दीं, जिससे देश में लागत-जनित मुद्रास्फीति उत्पन्न हुईकच्चे तेल और अन्य वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि ने भी भारत के आयात बिल को बढ़ाया, जिससे व्यापार घाटे पर दबाव पड़ा ।    

  1. वैश्विक आर्थिक मंदी: वित्त मंत्रालय की एक अध्ययन में यह आशंका जताई गई है कि वैश्विक मंदी, विशेषकर प्रमुख व्यापारिक साझेदार (जैसे अमेरिका) में आर्थिक मंदी, भारतीय निर्यात की मांग को कम कर सकती हैयह एक महत्वपूर्ण जोखिम है, क्योंकि निर्यात भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक प्रमुख विकास इंजन है, और वैश्विक मांग में कमी सीधे तौर पर इसकी वृद्धि को प्रभावित कर सकती है ।    

 

6. निष्कर्ष और रणनीतिक सिफारिशें 

 

भारत का विदेशी व्यापार एक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा हैदेश ने वैश्विक चुनौतियों के बावजूद अपने निर्यात को रिकॉर्ड स्तर तक पहुँचाने की क्षमता दिखाई है, जो इसकी बढ़ती आर्थिक शक्ति का प्रमाण हैसेवा क्षेत्र के मजबूत प्रदर्शन ने व्यापार घाटे को संतुलित करने और अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैविनिर्माण क्षेत्र में 'मेक इन इंडिया' और पीएलआई जैसी नीतियों के कारण होने वाला संरचनात्मक बदलाव एक दीर्घकालिक सकारात्मक विकास का संकेत है, जहाँ देश पारंपरिक कच्चे माल से उच्च मूल्य वाले उत्पादों की ओर बढ़ रहा है 

हालांकि, कई संरचनात्मक और बाह्य चुनौतियाँ बनी हुई हैं जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता हैचीन के साथ बढ़ता व्यापार घाटा एक प्रमुख चिंता है, जो भारत की आयात निर्भरता और आपूर्ति श्रृंखला की भेद्यता को उजागर करता हैवैश्विक भू-राजनीतिक तनाव और आर्थिक मंदी जैसे कारक भी व्यापार प्रदर्शन के लिए निरंतर जोखिम पैदा करते हैं इन चुनौतियों को देखते हुए, भारत के विदेशी व्यापार को और मजबूत करने के लिए निम्नलिखित रणनीतिक सिफारिशों पर विचार किया जा सकता है: 

 

  • घरेलू विनिर्माण को और बढ़ावा देना: इलेक्ट्रॉनिक्स, पूंजीगत वस्तुओं और सौर पैनल जैसे क्षेत्रों में घरेलू उत्पादन को और अधिक प्रोत्साहन देकर आयात पर निर्भरता को कम किया जा सकता है, जिससे व्यापार घाटा नियंत्रित होगा 

  • लॉजिस्टिक्स और बुनियादी ढाँचे में निवेश: राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति जैसी पहलों के माध्यम से बंदरगाहों और सड़कों जैसे बुनियादी ढाँचे का आधुनिकीकरण जारी रखना आवश्यक है, ताकि लॉजिस्टिक्स लागत को कम किया जा सके और निर्यातकों की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाया जा सके ।    

  • व्यापारिक साझेदारों का विविधीकरण: भारत को केवल पारंपरिक बाजारों पर निर्भर रहने के बजाय नए बाजारों और मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) की तलाश करनी चाहिए, जिससे भू-राजनीतिक जोखिमों के प्रति लचीलापन बढ़ेगा 

  • 'लोकल फॉर ग्लोबल' रणनीति को मजबूत करना: 'एक जिला, एक उत्पाद' जैसी पहलों को बढ़ावा देकर स्थानीय उत्पादों की गुणवत्ता और अंतर्राष्ट्रीय मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए, जिससे निर्यात बास्केट का और विस्तार होगा ।    

  • डिजिटल व्यापार का लाभ उठाना: ई-कॉमर्स निर्यात के लिए निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु आवश्यक डिजिटल बुनियादी ढाँचे और नीतियों को मजबूत करने पर जोर देना चाहिए, जो भारत के सेवा क्षेत्र की सफलता को दोहराने में मदद कर सकता है 

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