सुबह के 8 बजें होंगे।रामआसरे अभी भी गहरी नींद में सो रहा था।ऐसा लग रहा है जैसे अभी अभी सोया हो।इतने में रामआसरे के पिताजी गरियाते हुए उसे झकझोर देते हैं।बेचारे की नींद खुल जाती है।पिताजी का मुरझाया हुआ चेहरा देखकर रामआसरे समझ लेता है कि पिताजी रात में भरपूर पी नहीं पाए थे।सच्चाई यह थी कि बाहर सोने के कारण जून के महीने की सूर्य की किरण ने पिताजी के नशीली नींद में ख़लल पैदा कर दिया था।अधूरी नींद और पूरी मदिरा के कारण तेज रोशनी में सर पकड़ लिया था पिताजी का।इसी का बदला वह रामआसरे से ले रहे थे।देर से उठने पर उसको नालायक घोषित कर रहे थे और मां बहिन के रिस्ते में टेस्टेस्टेरोन भरने की भरपूर कोसिस कर रहे थे।
टेस्टेस्टेरोन का तो पता नही परंतु रामआसरे में एड्रेनेलिन का पूरा प्रभाव दिखा और उसने पिताजी को बलभर कूंट दिया।एकपल को तो घरवालों को ऐसा लगा जैसे पिताजी परलोक सिधार गए।मां को एक पल के लिए लगा कि जिस प्रतिशोध की वह देवी जी से मांग कर रही थी उसे उसके बेटे ने पूरा कर दिया,पर अगले ही पल अर्धांगिनी का भाव जागृत हुआ और एक जोरदार दहाड़ के साथ पछाड़ खाकर गिर पड़ी।एकतरफ पिताजी जी ढहे थे तो दूसरी ओर माताजी।जनम-जनम का साथ एकदम परिलक्षित हो रहा था।
यह दृश्य अकस्मात नही उत्पन्न हुआ था,बल्कि अक्सर शुप्रभात ऐसे ही होता है रामआसरे के जीवन में।
👌👌
जवाब देंहटाएंVery nice ।
जवाब देंहटाएं🙏
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएं👌
जवाब देंहटाएंक्या केमिकल भरी हुई कथा है।
जवाब देंहटाएं👌🙏
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