नागरिकता संशोधन बिल
रामआसरे जुम्मन मियाँ के चिलम से कश पर कश मारे जा रहे थे कि तभी सूचना मिली कि नागरिकता संशोधन बिल के विरोध में शहर में दंगा हो गया है।रामआसरे का यज्ञ सम्पन ही होने वाला था कि यह विघ्न।जुम्मन मियाँ का चिलम गंगा जमुनी तहजीब का एक प्रतीक था,जिसके लिए सभी धर्म एवं जाति के लोग एकत्रित होते थे।
रामआसरे अर्द्ध नशे में जुम्मन मियाँ की बेटी, जो दरवाजे की ओट से रामआसरे को देख रही थी,को देखकर सरकार के विरोध में संक्षिप्त परंतु प्रभावपूर्ण भाषण उड़ेल दिया।जुम्मन मियाँ की बेटी के होंठो की थरथराहट और शरमाकर नजरें नीची कर लेना इस बात का प्रतीक था कि रामआसरे मैदान मार चुका था।आज पहली बार हुआ था जब रामआसरे सरकार के विरोध में कुछ बोला था।
दरअसल रामआसरे आज विभिन्न धर्मों में निहित सारतत्त्व 'एकत्व' को जुम्मन मियाँ की बेटी के साथ एकाकार होकर महसूस करना चाह रहा था।पर इस बिल ने सब चौपट कर दिया।बिल पर गरमा गरम बहस चिलम के तेज में तेज हो गई। इस बिल से दोनों धर्म एक साथ प्रभावित हुआ।जुम्मन मियाँ की बेटी बाहर बैठी गोष्ठी के लंबे चलने से चिंतित हो गई,रामआसरे भी निराश हो गया।
इतने में रामआसरे के पिताजी का भी पदार्पण हो गया।वैसे तो रामआसरे के पिताजी सरकार के विरोध में ही खड़े दिखाई देते थे ,परंतु रामआसरे के लक्ष्य को भाँपकर आज पैतरा बदल दिए और सरकार के समर्थन में पिल पड़े।जुम्मन मियाँ की बेटी को यह सब नागवार गुजरा।उसने नाराज़ नजरों से रामआसरे की ओर देखा।रामआसरे को एकाकार का लक्ष्य दूर होता नजर आया।पिताजी के आ जाने से रामआसरे कई कश में लोंगो का साथ नही दे पाया था।पिताजी के आ जाने और फूंक न मारने का सम्मिलित असर था जिसके कारण उसका भाषण पुच्छ कशेरुक से जा चिपका था जो बहुत कोसिस के बाद भी बाहर नहीं निकल पा रहा था।जुम्मन मियाँ की बेटी की नाराज़ नजरों से रामआसरे के अंदर का कामदेव जागृत हुआ और उसने पिताजी को असहिष्णु,पुरातनपंथी तथा कट्टर हिन्दू करार कर दिया।फिर क्या था चिलम बड़ी की बोतल।जंग छिड़ गई।शहर का दंगा बग़ैर माध्यम के गावँ में प्रसारित हो गया।
"डायल 100" तथा पुलिस वैन से गांव के 19 लोंगो को थाने ले जाया जा रहा था।रामआसरे भी इसमें पिताजी के साथ शामिल थे।रामआसरे की बहुत इच्छा हो रही थी कि एक बार जुम्मन मियाँ की बेटी को ओझल होने से पहले देख लें,पर इतने कूंटें गए थे कि दरवाजे की ओट में खड़ी जुम्मन मियाँ की बेटी को देखने की हिम्मत नही जुटा पा रहे थे।
रामआसरे अर्द्ध नशे में जुम्मन मियाँ की बेटी, जो दरवाजे की ओट से रामआसरे को देख रही थी,को देखकर सरकार के विरोध में संक्षिप्त परंतु प्रभावपूर्ण भाषण उड़ेल दिया।जुम्मन मियाँ की बेटी के होंठो की थरथराहट और शरमाकर नजरें नीची कर लेना इस बात का प्रतीक था कि रामआसरे मैदान मार चुका था।आज पहली बार हुआ था जब रामआसरे सरकार के विरोध में कुछ बोला था।
दरअसल रामआसरे आज विभिन्न धर्मों में निहित सारतत्त्व 'एकत्व' को जुम्मन मियाँ की बेटी के साथ एकाकार होकर महसूस करना चाह रहा था।पर इस बिल ने सब चौपट कर दिया।बिल पर गरमा गरम बहस चिलम के तेज में तेज हो गई। इस बिल से दोनों धर्म एक साथ प्रभावित हुआ।जुम्मन मियाँ की बेटी बाहर बैठी गोष्ठी के लंबे चलने से चिंतित हो गई,रामआसरे भी निराश हो गया।
इतने में रामआसरे के पिताजी का भी पदार्पण हो गया।वैसे तो रामआसरे के पिताजी सरकार के विरोध में ही खड़े दिखाई देते थे ,परंतु रामआसरे के लक्ष्य को भाँपकर आज पैतरा बदल दिए और सरकार के समर्थन में पिल पड़े।जुम्मन मियाँ की बेटी को यह सब नागवार गुजरा।उसने नाराज़ नजरों से रामआसरे की ओर देखा।रामआसरे को एकाकार का लक्ष्य दूर होता नजर आया।पिताजी के आ जाने से रामआसरे कई कश में लोंगो का साथ नही दे पाया था।पिताजी के आ जाने और फूंक न मारने का सम्मिलित असर था जिसके कारण उसका भाषण पुच्छ कशेरुक से जा चिपका था जो बहुत कोसिस के बाद भी बाहर नहीं निकल पा रहा था।जुम्मन मियाँ की बेटी की नाराज़ नजरों से रामआसरे के अंदर का कामदेव जागृत हुआ और उसने पिताजी को असहिष्णु,पुरातनपंथी तथा कट्टर हिन्दू करार कर दिया।फिर क्या था चिलम बड़ी की बोतल।जंग छिड़ गई।शहर का दंगा बग़ैर माध्यम के गावँ में प्रसारित हो गया।
"डायल 100" तथा पुलिस वैन से गांव के 19 लोंगो को थाने ले जाया जा रहा था।रामआसरे भी इसमें पिताजी के साथ शामिल थे।रामआसरे की बहुत इच्छा हो रही थी कि एक बार जुम्मन मियाँ की बेटी को ओझल होने से पहले देख लें,पर इतने कूंटें गए थे कि दरवाजे की ओट में खड़ी जुम्मन मियाँ की बेटी को देखने की हिम्मत नही जुटा पा रहे थे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें