सोमवार, 30 दिसंबर 2019

हर पल यहाँ जी भर जिओ

 
 
             रामआसरे घर से निकलकर 'बनिऔटी' पहुँचा तो देखा कि उसके दोस्त लोग पहले से ही वहाँ उपस्थित थे।बनिऔटी गांव की ऐसी जगह होती है जहाँ वणिक लोंगो के घर हुआ करते हैं और उसी घर में दुकानें भी हुआ करती हैं।गाँव में यही शॉपिंग हब हुआ करते हैं जहाँ रोजमर्रा की वस्तुएं लगभग मिल जाया करती है।
          निहोर जो रामआसरे का यार था,वह भी वहाँ उपस्थित था।जब से व्यवहार में अंडरवेयर आया है तब से दोस्त यार ही हुआ करते हैं, 'लंगोटिया यार' की संकल्पना लंगोट के साथ ही विलुप्त हो गई है।पहले ब्रांड नही था।इसलिए लंगोटिया यार को कहावत में स्वीकृति मिल गई।कहीं कोई विरोध नहीं हुआ।आज यदि 'जॉकी यार' जैसे शब्द प्रयोग किये जांय तो अन्य ब्राण्ड के लोग विरोध पर उतर आएंगे।जॉकी यार कहने पर वंचित समाज के दोस्त और वंचित महसूस करेंगे।खैर,रामआसरे को देखते ही निहोर के भीतर का यारबाज जागा।रामआसरे का जोरदार स्वागत करते हुए निहोर ने कहा,"का दोस्त इसबार हैप्पी न्यू ईयर का क्या प्लान है?"गाँव के लोग हैप्पी को न्यू ईयर और बर्थडे से ऐसा चिपका दिए हैं कि उसे अलग करके नहीं बोलते।रामआसरे ग्रुप लीडर बनते हुए बोला,"हमारा तो रोज हैप्पी न्यू ईयर होता है।प्लान क्या करना है।"निहोर ने कहा,"अरे यार हैप्पी न्यू ईयर पर पार्टी होती है।रोज कहाँ पार्टी होती है।"रामआसरे ने कहा,"अबे तो करलो पार्टी।मँगावो जो खाना-पीना हो।"फिर क्या था पार्टी जम गई।
          रामआसरे घर से दाल लेने निकले थे।जब घर लौट रहे थे तो काली पॉलिथीन में एक पाव दाल लिए थे।रास्ते में एक बच्चा मिला तो पॉलीथिन उसे पकड़ाते हुए रामआसरे ने कहा कि जाओ इसे मेरी माँ को दे देना।रामआसरे की माँ इस एक पाव दाल से सप्ताह भर घर के लोंगो के लिए दाल बनाएंगी।
          रामआसरे लक्ष्यहीन "हर-पल यहाँ जी भर जिओ"गुनगुनाते हुए बढ़ा जा रहा था।रामआसरे इस "कनजूमिंग सेंस" को परंपरावादी बनते हुए गाँव के लोंगो से सीखा था जिसके मूल में 'यावतजीवेत घृतं पीवेत' की अवधारणा व्याप्त थी।
            

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब, वास्तविकता का सही चित्रण किया है आपने

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  2. जीवन मे आते नए उपलक्ष्य कई बार ऐसा ही हाल कर देते हैं आज के समय मे।सर् जी घृतं पिवेत इस युग का ऐसा सत्य बन रहा है कि लोग यथार्थ क्या है वो ही भूल रहे है।

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