सौभाग्य और दुर्भाग्य समय सापेक्ष है। कब आपका सौभाग्य,दुर्भाग्य में बदल जाए कहा नहीं जा सकता। हमारे एक जानने वाले पहली बार ससुराल गए,तारीख थी 20 मार्च 2020। पहली बार ससुराल गए थे तो सेवा सत्कार जामकर हो रहा था। बेचारे आजीवन सबसे तिरस्कार ही सहे थे, सत्कार पाकर भाव विह्वल थे। 21 को घर वापसी की योजना थी, परंतु माताजी के प्रेम ने उन्हें रोक लिया। रुकते भी क्यों ना पहली बार मातृप्रेम जो मिल रहा था। ऐसा नहीं है कि भाई साहब के मां नहीं थीं,परंतु अपनी मां से वह प्रेम नहीं प्राप्त कर पाए थे जो आज प्राप्त कर रहे थे।
भाई साहब को ससुराल में बड़ा आनंद आ रहा था उनका मन हो रहा था कि यही रुक जाएं और कभी वापस तिरस्कार क्षेत्र में ना जाएं। पहली बार ईश्वर ने उनके मन की सुनी और मोदी के वचन में प्रकट होकर 22 तारीख दिन रविवार को 'जनता कर्फ्यू' की घोषणा कर दी। भाई साहब डरे हुए थे कि घर जाकर क्या जवाब दूंगा, परंतु जब साली साहिबा ने लजाते हुए नजरें झुका कर यह कहा कि,"जीजा जी रुक जाइए ना", तो भाई साहब को घर वालों को जवाब देने की ताकत और रुकने की वजह मिल गई। अब चाहे कुछ भी हो जाए भाई साहब वहां से सरकने वाले ना थे।
सुबह का नाश्ता,दोपहर का भोजन,शाम का नाश्ता, रात्रि का भोजन,भाई साहब के क्या कहने थे। उस पर सालियों के साथ हंसी-ठिठोली तो जैसे स्वर्गीय आनंद दे रहा था, बस भाई साहब स्वर्गीय नहीं थे। वैसे भाई साहब बड़े शर्मीले स्वभाव के थे, पर सालियों को कनखियों से देखते हुए शर्माना बड़े-बड़े शर्मीले लोगों को शर्मिंदा कर देने जैसा था। इसी खुशनुमा माहौल के बीच मोदी जी ने घोषणा कर दी "21 दिन का लॉक डाउन"। दिन बड़े अच्छे से बीत रहे थे भाई साहब के।
भाई साहब का सौभाग्य दुर्भाग्य में बदलने वाला था। हुआ यूं कि सास माता का स्वास्थ्य खराब हो गया। यद्यपि घर में और लोग थे जो बाहर जा कर दवा ला सकते थे, लेकिन भाई साहब यह जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लिए। लाख मना करने पर भी भाई साहब नहीं माने। जब बाहर निकल रहे थे तो कनखियों से उन्होंने साली साहिबा को देखा।साली साहिबा की नजरें बता रही थी कि भाई साहब ने जिस उद्देश्य से यह जिम्मेदारी अपने ऊपर ली थी उसमें वह सफल हो गए थे। घर से 2 किलोमीटर दूर बाजार था जहां से दवा लानी थी। अभी 1 किलोमीटर ही आगे आए थे कि पुलिस की गाड़ी आ गई। पुलिस वालों ने ना आव देखा ना ताव भाई साहब को जमकर धर दिए। भाई साहब जब तक घर से बाहर निकलने का कारण बता पाते तब तक कई लाठियां पड़ चुकी थी।
भाई साहब लाक तो कई दिन से थे, पर डाउन आज हुए थे। इस तरह लाक डाउन आज पूर्ण हुआ था। भावुकता में आंसू आ गए थे भाई साहब को। किसी तरह दवा लेकर घर पहुंचे भाई साहब। उनका किसी से बात करने का मन नहीं हो रहा था। नजरें कनखियों की ओर नहीं जा पा रही थीं, बस एकटक जमीन पर टिकी थीं।म्यूजिक सिस्टम पर गाना बज रहा था,"मैं ससुराल नहीं जाऊंगी......।"
भाई साहब को ससुराल में बड़ा आनंद आ रहा था उनका मन हो रहा था कि यही रुक जाएं और कभी वापस तिरस्कार क्षेत्र में ना जाएं। पहली बार ईश्वर ने उनके मन की सुनी और मोदी के वचन में प्रकट होकर 22 तारीख दिन रविवार को 'जनता कर्फ्यू' की घोषणा कर दी। भाई साहब डरे हुए थे कि घर जाकर क्या जवाब दूंगा, परंतु जब साली साहिबा ने लजाते हुए नजरें झुका कर यह कहा कि,"जीजा जी रुक जाइए ना", तो भाई साहब को घर वालों को जवाब देने की ताकत और रुकने की वजह मिल गई। अब चाहे कुछ भी हो जाए भाई साहब वहां से सरकने वाले ना थे।
सुबह का नाश्ता,दोपहर का भोजन,शाम का नाश्ता, रात्रि का भोजन,भाई साहब के क्या कहने थे। उस पर सालियों के साथ हंसी-ठिठोली तो जैसे स्वर्गीय आनंद दे रहा था, बस भाई साहब स्वर्गीय नहीं थे। वैसे भाई साहब बड़े शर्मीले स्वभाव के थे, पर सालियों को कनखियों से देखते हुए शर्माना बड़े-बड़े शर्मीले लोगों को शर्मिंदा कर देने जैसा था। इसी खुशनुमा माहौल के बीच मोदी जी ने घोषणा कर दी "21 दिन का लॉक डाउन"। दिन बड़े अच्छे से बीत रहे थे भाई साहब के।
भाई साहब का सौभाग्य दुर्भाग्य में बदलने वाला था। हुआ यूं कि सास माता का स्वास्थ्य खराब हो गया। यद्यपि घर में और लोग थे जो बाहर जा कर दवा ला सकते थे, लेकिन भाई साहब यह जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लिए। लाख मना करने पर भी भाई साहब नहीं माने। जब बाहर निकल रहे थे तो कनखियों से उन्होंने साली साहिबा को देखा।साली साहिबा की नजरें बता रही थी कि भाई साहब ने जिस उद्देश्य से यह जिम्मेदारी अपने ऊपर ली थी उसमें वह सफल हो गए थे। घर से 2 किलोमीटर दूर बाजार था जहां से दवा लानी थी। अभी 1 किलोमीटर ही आगे आए थे कि पुलिस की गाड़ी आ गई। पुलिस वालों ने ना आव देखा ना ताव भाई साहब को जमकर धर दिए। भाई साहब जब तक घर से बाहर निकलने का कारण बता पाते तब तक कई लाठियां पड़ चुकी थी।
भाई साहब लाक तो कई दिन से थे, पर डाउन आज हुए थे। इस तरह लाक डाउन आज पूर्ण हुआ था। भावुकता में आंसू आ गए थे भाई साहब को। किसी तरह दवा लेकर घर पहुंचे भाई साहब। उनका किसी से बात करने का मन नहीं हो रहा था। नजरें कनखियों की ओर नहीं जा पा रही थीं, बस एकटक जमीन पर टिकी थीं।म्यूजिक सिस्टम पर गाना बज रहा था,"मैं ससुराल नहीं जाऊंगी......।"
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