मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

Happy New Year

                      Happy New Year

‌           रामआसरे पिछले दो दिन से पढ़ाई पर  फ़ोकस किये थे।रामआसरे के पिताजी आश्चर्यचकित थे।घर वालों को कपूत सपूत होते नज़र आया।रामआसरे पिताजी का चरणस्पर्श करते हुए नव वर्ष की बधाई दी।पिताजी अचकचाते हुए रामआसरे को नववर्ष की शुभकामनाएं एवं आशीर्वाद दिये।दरअसल इसतरह की औपचारिकता पिता पुत्र में गॉंवों में नहीं पाई जाती।इसीलिये पिताजी थोड़ा अकबका गए थे।
‌             रामआसरे पिताजी का मूँड़ भाँपते हुए अपना डिमांड दाग दिए।" B.E.O. का फॉर्म भरना है,तो पैसे चाहिए थे।सोच रहा हूँ कोचिंग भी कर लूँ।"रामआसरे ने पिताजी से कहा।
‌पिताजी : ई B.E.O.का है।
‌रामआसरे को इतने तफ्तीश की संभावना नही थी।खुद को संभालते हुए बोला।अरे वो निहोर बता रहा था कि खंड शिक्षा अधिकारी की वैकेंसी आयी है,तो सोच रहा हूँ मेहनत कर रहा हूँ तो अप्लाई कर दूं।
‌        रामआसरे के पिताजी को सपूत फिर कपूत नजर आने लगा।पिता होने के नाते क्षण भर में सारा माजरा समझ गए।क्रोध की पराकाष्ठा में बोले,"मादर...  शिक्षा का तो वैसे ही खंड-खंड हुआ है।अब तुम खण्ड शिक्षा अधिकारी बनकर और कितना खंड करोगे। अरे भों....... के पहले इण्टर तो पास कर लो।"
‌       रामआसरे को समझते देर न लगी कि निहोर से उसको गलत जानकारी मिल गई है।निहोर ने ही बताया था कि कोई इस तरह का फॉर्म आया है।उसके आगे रामआसरे जानने की कोशिस इसलिये नहीं किये थे क्योंकि उन्हें अपनी क्षमता पता थी।पिताजी इतनी तफ़्तीश करेंगे इसका भी अंदाजा नहीं था।दो दिन से माहौल इसलिए बना रहे थे कि कुछ पैसे ऐंठ लिए जाएं जिससे न्यू ईयर को" हैप्पी" किया जा सके।
‌        रामआसरे न्यू ईयर को सैड करने के मूड में नहीं था।तुरंत पिताजी के सामने से अदृश्य हो गया।अभी तक प्रकट नहीं हुआ है।देखिए.....कहाँ प्रकट होते हैं।फ़िलहाल रामआसरे के पिताजी घोषणा कर चुके हैं कि कोई भी रामआसरे को उधार देता है तो अपनी जिम्मेदारी पर दे।
‌          रामआसरे के कानपुर में प्रकट होने की संभावना को देखते हुए मैं तो प्रयागराज निकल लिया हूँ।


सोमवार, 30 दिसंबर 2019

हर पल यहाँ जी भर जिओ

 
 
             रामआसरे घर से निकलकर 'बनिऔटी' पहुँचा तो देखा कि उसके दोस्त लोग पहले से ही वहाँ उपस्थित थे।बनिऔटी गांव की ऐसी जगह होती है जहाँ वणिक लोंगो के घर हुआ करते हैं और उसी घर में दुकानें भी हुआ करती हैं।गाँव में यही शॉपिंग हब हुआ करते हैं जहाँ रोजमर्रा की वस्तुएं लगभग मिल जाया करती है।
          निहोर जो रामआसरे का यार था,वह भी वहाँ उपस्थित था।जब से व्यवहार में अंडरवेयर आया है तब से दोस्त यार ही हुआ करते हैं, 'लंगोटिया यार' की संकल्पना लंगोट के साथ ही विलुप्त हो गई है।पहले ब्रांड नही था।इसलिए लंगोटिया यार को कहावत में स्वीकृति मिल गई।कहीं कोई विरोध नहीं हुआ।आज यदि 'जॉकी यार' जैसे शब्द प्रयोग किये जांय तो अन्य ब्राण्ड के लोग विरोध पर उतर आएंगे।जॉकी यार कहने पर वंचित समाज के दोस्त और वंचित महसूस करेंगे।खैर,रामआसरे को देखते ही निहोर के भीतर का यारबाज जागा।रामआसरे का जोरदार स्वागत करते हुए निहोर ने कहा,"का दोस्त इसबार हैप्पी न्यू ईयर का क्या प्लान है?"गाँव के लोग हैप्पी को न्यू ईयर और बर्थडे से ऐसा चिपका दिए हैं कि उसे अलग करके नहीं बोलते।रामआसरे ग्रुप लीडर बनते हुए बोला,"हमारा तो रोज हैप्पी न्यू ईयर होता है।प्लान क्या करना है।"निहोर ने कहा,"अरे यार हैप्पी न्यू ईयर पर पार्टी होती है।रोज कहाँ पार्टी होती है।"रामआसरे ने कहा,"अबे तो करलो पार्टी।मँगावो जो खाना-पीना हो।"फिर क्या था पार्टी जम गई।
          रामआसरे घर से दाल लेने निकले थे।जब घर लौट रहे थे तो काली पॉलिथीन में एक पाव दाल लिए थे।रास्ते में एक बच्चा मिला तो पॉलीथिन उसे पकड़ाते हुए रामआसरे ने कहा कि जाओ इसे मेरी माँ को दे देना।रामआसरे की माँ इस एक पाव दाल से सप्ताह भर घर के लोंगो के लिए दाल बनाएंगी।
          रामआसरे लक्ष्यहीन "हर-पल यहाँ जी भर जिओ"गुनगुनाते हुए बढ़ा जा रहा था।रामआसरे इस "कनजूमिंग सेंस" को परंपरावादी बनते हुए गाँव के लोंगो से सीखा था जिसके मूल में 'यावतजीवेत घृतं पीवेत' की अवधारणा व्याप्त थी।
            

सोमवार, 23 दिसंबर 2019

लेबर चौराहा

                             लेबर चौराहा
           
                रामआसरे भोजपुरिया हीरो की तरह तैयार होकर बुलेट पर सवार  'देवी दर्शन' हेतु शहर की ओर चल पड़ा।रामआसरे के पिताजी केवल धक-धक की आवाज ही सुन पाए थे जो 'डॉप्लर इफेक्ट' के कारण कम होती जा रही थी।"आज उनसे मिलना है हमें" नामक निर्गुण रामआसरे गुनगुनाते हुए तीव्र गति से लक्ष्य की ओर बढ़ा जा रहा था।आत्मा,आत्मा से मिलकर परमात्मा होने को बेचैन थी।
            सहसा भीड़ देखकर रामआसरे चौंका और बुलेट को किनारे लगा दिया।उसे लगा कि देवी दर्शन का उद्देश्य सबको पता चल गया है।रामआसरे की आंखों के सामने पिछली बार कूटे जाने का दृश्य उभर आया।देखते ही देखते बीसों लोग रामआसरे को घेरकर खड़े हो गए।रामआसरे अंदर तक हिल चुका था।तब तक भीड़ में से आवाज आई "भैया हम सब काम कर लेते हैं,ईंटा-गारा,खेती-बारी, झाड़ू-पोंछा सब।आपके यहाँ क्या काम है।"
          रामआसरे की जान में जान आईं, परंतु यह सब इतनी शीघ्रता में हुआ कि रामआसरे जान में जान आने का साक्षात नहीं कर पाए।इसप्रकार दुनिया के सामने  यह रहस्य आज भी बरकरार है कि जान ,जान में से किस प्रकार जाती है और पुनः कैसे वापस आती है।रामआसरे को यह समझ में आ गया कि वह लेबर चौराहे पर खड़ा है और जिससे वह घिरा है वह सब लेबर हैं।
             इंसान की यह हालत देखकर रामआसरे द्रवित हो गया।आदमी बिक रहा था।सब के चेहरे पर भावशून्यता थी।व्यवस्था के प्रति रामआसरे के मन में गहरा असंतोष उतपन्न हुआ,क्रांति का भाव जागृत हुआ।मन हुआ कि इसी बुलेट पर मार्क्सवाद,लेनिनवाद,माओवाद,नक्सलवाद सबको बैठाकर पूरी व्यवस्था को रौंदकर सम करके साम्यवाद की स्थापना कर डाले।पर इतिहास में बुलेट पर सवार होकर किसी प्रकार की क्रांति का उदाहरण न पाकर उसने स्वयं की भावनाओं पर नियंत्रण कर लिया।क्रांति का विचार स्थगित हो गया।
              बुलेट आगे बढ़ी।बुलेट की धक-धक रामआसरे अपने सीने में महसूस कर रहा था। लेबर चौराहे के दृश्य से रामआसरे के भीतर उपजी कभी न नष्ट होने वाली अशांति, देवी दर्शन की कल्पना से बौद्ध दर्शन के क्षणिकवाद में परिवर्तित हो गई।
           

मंगलवार, 17 दिसंबर 2019


   नागरिकता संशोधन बिल
        रामआसरे जुम्मन मियाँ के चिलम से कश पर कश मारे जा रहे थे कि तभी सूचना मिली कि नागरिकता संशोधन बिल के विरोध में शहर में दंगा हो गया है।रामआसरे का यज्ञ सम्पन ही होने वाला था कि यह विघ्न।जुम्मन मियाँ का चिलम गंगा जमुनी तहजीब का एक प्रतीक था,जिसके लिए सभी धर्म एवं जाति के लोग एकत्रित होते थे।
                रामआसरे अर्द्ध नशे में जुम्मन मियाँ की बेटी, जो दरवाजे की ओट से रामआसरे को देख रही थी,को देखकर सरकार के विरोध में संक्षिप्त परंतु प्रभावपूर्ण भाषण उड़ेल दिया।जुम्मन मियाँ की बेटी के होंठो की थरथराहट और शरमाकर नजरें नीची कर लेना इस बात का प्रतीक था कि रामआसरे मैदान मार चुका था।आज पहली बार हुआ था जब रामआसरे सरकार के विरोध में कुछ बोला था।
              दरअसल रामआसरे आज विभिन्न धर्मों में निहित सारतत्त्व 'एकत्व' को जुम्मन मियाँ की बेटी के साथ एकाकार होकर महसूस करना चाह रहा था।पर इस बिल ने सब चौपट कर दिया।बिल पर गरमा गरम बहस चिलम के तेज में तेज हो गई। इस बिल से दोनों धर्म एक साथ प्रभावित हुआ।जुम्मन मियाँ की बेटी बाहर बैठी गोष्ठी के लंबे चलने से चिंतित हो गई,रामआसरे भी निराश हो गया।
             इतने में रामआसरे के पिताजी का भी पदार्पण हो गया।वैसे तो रामआसरे के पिताजी सरकार के विरोध में ही खड़े दिखाई देते थे ,परंतु रामआसरे के लक्ष्य को भाँपकर आज पैतरा बदल दिए और सरकार के समर्थन में पिल पड़े।जुम्मन मियाँ की बेटी को यह सब नागवार गुजरा।उसने नाराज़ नजरों से रामआसरे की ओर देखा।रामआसरे को एकाकार का लक्ष्य दूर होता नजर आया।पिताजी के आ जाने से रामआसरे कई कश में लोंगो का साथ नही दे पाया था।पिताजी के आ जाने और फूंक न मारने का सम्मिलित असर था जिसके कारण उसका भाषण पुच्छ कशेरुक से जा चिपका था जो बहुत कोसिस के बाद भी बाहर नहीं निकल पा रहा था।जुम्मन मियाँ की बेटी की नाराज़ नजरों से रामआसरे के अंदर का कामदेव जागृत हुआ और उसने पिताजी को असहिष्णु,पुरातनपंथी तथा कट्टर हिन्दू करार कर दिया।फिर क्या था चिलम बड़ी की बोतल।जंग छिड़ गई।शहर का दंगा बग़ैर माध्यम के गावँ में प्रसारित हो गया।
                "डायल 100" तथा पुलिस वैन से गांव के 19 लोंगो को थाने ले जाया जा रहा था।रामआसरे भी इसमें पिताजी के साथ शामिल थे।रामआसरे की बहुत इच्छा हो रही थी कि एक बार जुम्मन मियाँ की बेटी को ओझल होने से पहले देख लें,पर इतने कूंटें गए थे कि दरवाजे की ओट में खड़ी जुम्मन मियाँ की बेटी को देखने की हिम्मत नही जुटा पा रहे थे।

शनिवार, 7 दिसंबर 2019

नागिन डांस...

नागिन डांस....

           विवाह प्रांगण में जब रामआसरे का प्रवेश हुआ तो उस समय डीजे पर गाना बज रहा था,"गोरी तोरी चुनरी ब लाल-लाल रे....."।रामआसरे का मन पहुँचते ही कमरतोड़ डांस करके ऐसा पुष्प बनने का था जिस पर सभी तितलियां रसपान करने को मर मिटे।परन्तु सामने रामआसरे के पिताजी दिख गए।रामआसरे के कमर तोड़ने की असीम इच्छा टूटती नजर आई।
         पिताजी रामआसरे की ओर मुखातिब हुए और बोले, "देखो गाँव घर की शादी है जिम्मेदारी से रहना,नाक न कटे।"रामआसरे अपने पुण्य कर्मों से पिताजी की नाक कई बार कटवा चुके थे।पिताजी की नाक भी पुनरुद्भवन की शक्ति प्राप्त थी,कटने के बाद फिर उग आती थी।इसी उगे हुए नाक को पिताजी संरक्षित करने की कोशिस कर रहे थे और रामआसरे को आदेशित कर रहे थे।पिताजी के आदेश और सरकारी आदेश में कोई फर्क नही था,सो रामआसरे इस आदेश का अनुपालन न करने को अभिशप्त थे।
        रामआसरे काफी देर तक इधर उधर घूमता रहा,समय नही कट रहा था।उसको अपनी प्रतिभा प्रदर्शन का अवसर नहीं मिल रहा था।पिताजी के सामने कमर तोड़ डांस का मतलब वास्तविक रूप से कमर टूटना।समय काफी हो गया।तितलियाँ लगभग जा चुकी थीं।रामआसरे घूमते- टहलते खाने के लिए लगे स्टाल की ओर चला गया।रामआसरे अन्यमनस्क सा खड़ा था कि सामने से पिताजी आ गए और रामआसरे की तरफ हाथ जोड़कर कहा कि, "भाईसाब खाना खाकर जाइएगा।"रामआसरे चौंका पर जल्द ही समझ गया कि पिताजी फुल्ली टल्ली हैं और उस अवस्था को प्राप्त हो गए हैं जहाँ जीव भेद समाप्त हो जाता है।रामआसरे मन की गति से उड़ा और सीधे डांस फ्लोर पर लैंड हुआ।डीजे में नागिन धुन चल रहा था,रामआसरे की सारी कोशिकाएं क्षण भर में सपोले से नाग नागिन में तब्दील हो चूंकि थी।आज वास्तव में रामआसरे कमर तोड़ डालने को आतुर लग रहा था।पिताजी के हटने का इंतजार करते-करते रामआसरे कई पेग गले के नीचे उतार चुका था,नागिन बनते ही सारे शरीर में एल्कोहल जहर की भांति फैलने लगा था।काफी रात हो जाने के कारण डीजे बंद करने का आदेश हुआ,उधर डीजे बंद हुआ इधर रामआसरे गस्त खाकर गिर पड़े जैसे जो ईंधन डाल रखा था वो खत्म हो गया हो।
         पिताजी सुबह उठे तो उन्हें अपनी नाक कटी मिली,समझ गए कि रामआसरे फिर कोई पुण्य काम कर बैठे हैं।
 

           

शनिवार, 30 नवंबर 2019

मंदी

मंदी...
         
      रामआसरे के पिताजी 'इकनोमिक स्लोडाउन' से अत्यंत चिंतित हैं।उन्हें इस बात का पक्का यकीन है कि देश मंदी की चपेट में जाने वाला है।उनके इस यकीन को दूसरी तिमाही की जी.डी.पी. रिपोर्ट ने और पुख्ता कर दिया।रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि देश के उपभोग व्यय में कमी आई है।उपभोग व्यय में आई कमी की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते हुए रामआसरे के पिताजी अब क्वार्टर बढ़ा कर पीने लगे हैं,इस उम्मीद के साथ कि बढ़े हुए उपभोग से सायद  देश मंदी के चपेट में जाने से बच जाय।
        रामआसरे के पिताजी बचपन से ही राष्ट्र भक्त रहे हैं।मूल्यपरक शिक्षा अर्जित करते हुए जब उन्हें यह ज्ञान हुआ था कि राज्य के राजस्व का प्रमुख स्रोत आबकारी शुल्क है,तभी से उन्होंने देश हित में पीना प्रारम्भ कर दिया था।इसप्रकार,राजस्व में सहयोग के माध्यम से देशहित में यह उनका प्रथम योगदान था,दूसरा महत्वपूर्ण योगदान मदिरा उपभोग में की गई वृद्धि है।
      रामआसरे मंदी के मुद्दे पर सरकार की तरह आशावादी है तथा पिताजी से भिन्न मत रखता है।R.B.I. से पैसा लेकर खर्च करने का सरकार का तरीका रामआसरे को बेहद पसंद आया।इस विषय पर सरकार का पक्ष रखते हुए कई बार पिताजी से उसकी भिड़ंत हो चुकी है।दरअसल इस सरकारी तरीके को रामआसरे व्यक्तिगत स्तर पर भी प्रयोग कर रहा था तथा पिताजी के पैसों को उपभोग वृद्धि में लगा रहा था।चूंकि असली समस्या उपभोग की थी इसलिए निवेश पर फोकस नहीं था।रामआसरे के कुछ अमितव्ययी मित्र भी थे जो तंगी में थे।पिताजी के पैसों को रामआसरे ने  'बेल आउट पैकेज' के रूप में मित्रो को वितरित कर दिया था,जिसके वापसी की संभावना न के बराबर थी।रामआसरे और पिताजी के भिड़ंत की असली वजह यही थी।
        रामआसरे के पिताजी अतीत प्रेम से उपजे तर्क के वशीभूत होकर उपस्थित लोंगों से कहा कि,'पहले देश में गतिहीनता नहीं पाई जाती थी और आज देख लो देश में मंदी का दौर सुरु हो गया है।'रामआसरे पिताजी की तरफ देखकर हँसा और बोला 'गतिहीनता होने के लिए गति का होना जरूरी है और आप जिस काल की बात कर रहें है उसमें गति ही नही थी।'यह अतीत प्रेम पर करारा प्रहार था,प्रतिक्रिया स्वरूप पिताजी द्वारा रामआसरे पर ऐसा प्रहार हुआ कि एक ही लाठी में रामआसरे की सांसें देश के विकास दर की भांति धीमी गति से चलने लगी।

मंगलवार, 19 नवंबर 2019

गुड मॉर्निंग...



 सुबह के 8 बजें होंगे।रामआसरे अभी भी गहरी नींद में सो रहा था।ऐसा लग रहा है जैसे अभी अभी सोया हो।इतने में रामआसरे के पिताजी गरियाते हुए उसे झकझोर देते हैं।बेचारे की नींद खुल जाती है।पिताजी का मुरझाया हुआ चेहरा देखकर रामआसरे समझ लेता है कि पिताजी रात में भरपूर पी नहीं पाए थे।सच्चाई यह थी कि बाहर सोने के कारण जून के महीने की सूर्य की किरण ने पिताजी के नशीली नींद में ख़लल पैदा कर दिया था।अधूरी नींद और पूरी मदिरा के कारण तेज रोशनी में सर पकड़ लिया था पिताजी का।इसी का बदला वह रामआसरे से ले रहे थे।देर से उठने पर उसको नालायक घोषित कर रहे थे और मां बहिन के रिस्ते में टेस्टेस्टेरोन भरने की भरपूर कोसिस कर रहे थे।
        टेस्टेस्टेरोन का तो पता नही परंतु रामआसरे में एड्रेनेलिन का पूरा प्रभाव दिखा और उसने पिताजी को बलभर कूंट दिया।एकपल को तो घरवालों को ऐसा लगा जैसे पिताजी परलोक सिधार गए।मां को एक पल के लिए लगा कि जिस प्रतिशोध की वह देवी जी से मांग कर रही थी उसे उसके बेटे ने पूरा कर दिया,पर अगले ही पल अर्धांगिनी का भाव जागृत हुआ और एक जोरदार दहाड़ के साथ पछाड़ खाकर गिर पड़ी।एकतरफ पिताजी जी ढहे थे तो दूसरी ओर माताजी।जनम-जनम का साथ एकदम परिलक्षित हो रहा था।
         यह दृश्य अकस्मात नही उत्पन्न हुआ था,बल्कि अक्सर शुप्रभात ऐसे ही होता है रामआसरे के जीवन में।

बुधवार, 6 नवंबर 2019

आदत

 
      जीवन में आदतों का बड़ा योगदान है। व्यक्ति और आदतों का अन्योन्याश्रित संबंध है। व्यक्ति आदत बनाता है और आदतें व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं।आदतें समाज के परिवेश पर भी बहुत कुछ निर्भर करती हैं।
         आदतें दों प्रकार की होती हैं-शुभ आदतें और अशुभ आदतें। शुभ आदतें शान्त और स्थिर प्रकृति की होती हैं। इस स्वभाव के कारण गतिशील समाज में शुभ आदतों को सुपात्र कम ही मिल पाते हैं। अशुभ आदते अस्थिर एवं चंचल प्रकृति की होती हैं तथा इनमें आकर्षण भी प्रबल होता है। यही कारण है कि इनका प्रसार, पहुँच अधिक लोंगों तक है। पूर्ण शुभता का आकांक्षी प्रत्येक व्यक्ति है तथा अशुभ आदतों के त्याज्य के लिए प्रयासरत है।
       शुभ अशुभ आदतें हमेशा व्यक्ति की ओर प्रवाहित होती रहती हैं। व्यक्ति अपने संकल्प के अनुसार जाने अनजाने आदतों को प्रवेश की अनुमति देता रहता है।ये आदते हमारे भीतर संचित और संगठित होती रहती हैं। धीरे धीरे ये शक्तिशाली होकर हमारा व्यक्तिव हो जाती हैं। ये इतना शक्तिशाली हो जाती हैं कि हम इन्हीं से पहचाने जाने लगते हैं।अगर ईमानदारी आदत हो गई तो यह कहा जयेगा की बड़ा ईमानदार आदमी है, यदि बेईमानी की आदत हो गई तो कहा जायेगा कि बड़ा बेईमान आदमी है।
       सफलता असफलता और कुछ नहीं बस आदते हैं। जिसे सफलता कहा जाता है, उसे प्राप्त करने की एक विधि होगी, एक प्रक्रिया होगी, उसका अपना एक स्वभाव होगा। बस इसी के अनुरूप जिसकी आदतें हो गई वो सफल बाकी सब असफल। यदि किसी को क्रिकेट में एक अच्छा बैट्समैन बनना है तो उसे बैटिंग का अभ्यास करने की आदत डालनी होगी, अगर वह बॉलिंग का अभ्यास करेगा तो एक अच्छा बैट्समैन कभी नहीं बन सकता।
         सोचिये.......कहीं आप बैट्समैन का लक्ष्य करके बॉलिंग का अभ्यास तो नहीं कर रहें हैं।

       
       
          

शनिवार, 2 नवंबर 2019

महात्मा गाँधी के आर्थिक विचार

गांधी जी कोई अर्थशास्त्री नहीं थे, परंतु जीवन के हर क्षेत्र पर उनकी अपनी मौलिक दृष्टि थी, स्वयं की अनुभूति एवं विचार थे। अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में भी उनका अपना चिंतन था। गांधी जी के आर्थिक विचार तत्कालीन परिस्थितियों की उपज थे जिनमें दूरदर्शिता थी, जिसके कारण उनके विचार आज भी प्रासंगिक एवं अनुकरणीय हैं। निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से गांधी जी के आर्थिक विचारों को समझा जा सकता है:

1. त्यागपूर्वक उपभोग: गांधी जी नैतिक मूल्यों के प्रबल समर्थक थे। त्याग की भावना से ओत-प्रोत थे। यही कारण है कि 'त्याग पूर्वक उपभोग' का समर्थन करते थे। यह कहीं न कहीं उपभोक्तावादी संस्कृति के खतरे तथा संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के प्रति गांधी जी की सजगता को व्यक्त करता है। गांधी जी कहा करते थे, "प्रकृति में आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हैं, परंतु लालच के लिए वे अपर्याप्त हैं।"

2. श्रम का महत्व: गांधी जी श्रम को बहुत महत्व देते थे। श्रम के महत्व को स्थापित करने के लिए चरखे को गांधी जी ने प्रतीक के रूप में प्रयोग किया। उनका मानना था कि व्यक्ति को उपभोग का अधिकार तभी है जब उसके समतुल्य वह उत्पादन भी करे। आत्मनिर्भरता के लिए श्रम आवश्यक है। अनावश्यक प्रतिस्पर्धा से बचने एवं सहज कौशल विकास के लिए गांधी जी वर्ण व्यवस्था का समर्थन करते थे जो श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण सिद्धांत के समरूप था।

3. धन एवं संपत्ति मात्र साधन: गांधी जी धन को साधन मानते थे। उनके अनुसार जीवन के जो चरम लक्ष्य हैं यथा सुख, शांति और कल्याण, उनकी प्राप्ति में धन सहायक मात्र है। इस प्रकार मानवता के कल्याण के लिए धन की उपयोगिता है। धन प्राप्त करना ही मनुष्य के जीवन का उद्देश्य नहीं है।

4. न्यासधारिता: गांधी जी धन संचय को अनुचित मानते थे। आवश्यक आवश्यकताओं के अतिरिक्त जो भी संपत्ति है उस पर सभी का अधिकार है। यदि किसी के पास अतिरिक्त संपत्ति है तो वह उस संपत्ति का संरक्षक है। उसे स्वयं को संपत्ति का मालिक नहीं समझना चाहिए। वह उस संपत्ति का 'न्यासी' है। गांधी जी के इस विचार को 'ट्रस्टीशिप सिद्धांत' के रूप में जाना जाता है। ट्रस्टीशिप की यह अवधारणा असमानता को समाप्त करने तथा गलाकाट प्रतियोगिता से बचने का एक उपाय सिद्ध हो सकती है यदि इसे व्यवहारिक स्वरूप दिया जा सके।

5. कौशल युक्त शिक्षा: गांधी जी कौशल विकास को महत्व देते थे। उनके अनुसार शिक्षा व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जो व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करे। 'वर्धा योजना' जिसे 'नई तालीम' के नाम से भी जाना जाता है, में गांधी जी ने ऐसी शिक्षा व्यवस्था की कल्पना देश के समक्ष रखी थी, जिसमें छात्रों को रोजगार परक शिक्षा देने पर बल दिया गया। गांधी जी आत्मनिर्भरता के प्रबल समर्थक थे।

6. सर्वोदय: गांधी जी को प्रत्येक व्यक्ति के उत्थान की चिंता थी। सर्वोदय के माध्यम से सर्व के उदय की उनकी कल्पना थी, जो वर्तमान में 'समावेशी विकास' की अवधारणा में परिलक्षित होता है। आर्थिक क्रिया मांग एवं पूर्ति नामक यंत्रों से गतिमान होती है। यदि वंचना किसी भी रूप में विद्यमान है तो यह मांग की क्रियाशीलता को कम कर देगा जो अर्थव्यवस्था को मंदी की ओर ले जाएगा और आर्थिक विकास को अवरुद्ध करेगा।

7. ग्रामराज्य: गांधी जी 'ग्राम-राज्य' के समर्थक थे। गांधी जी एक ऐसे ग्राम की कल्पना करते थे जो नीति निर्माण करने तथा उसे लागू करने में सक्षम हो। प्रत्येक ग्राम आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो तथा अपने उपभोग का अधिकांश स्वयं उत्पादित करे। गांधी जी ने सम्पूर्ण देश की यात्रा में यह देखा था कि भारत गांवों में बसता है जो कृषि पर निर्भर है। बिना गांवों का विकास किए, कृषि को समुचित महत्व दिए, भारत का विकास नहीं किया जा सकता। ग्राम राज्य के पीछे गांधी जी की यही दृष्टि काम कर रही थी।

8. लघु एवं कुटीर उद्योग को विशेष महत्व: गांधी जी लघु एवं कुटीर उद्योगों को अधिक महत्व देते थे। लघु एवं कुटीर उद्योग को रोजगार परक मानते थे। मशीनीकरण का गांधी जी विरोध करते थे, क्योंकि इससे रोजगार कम होते हैं। उनका मानना था कि उन्हीं मशीनों का समर्थन किया जाना चाहिए जिनसे रोजगार न छिने तथा जिनके प्रयोग से मानवता का कल्याण हो। मशीन गहन होने के कारण वे बड़े उद्योगों को कम महत्व देते थे।

9. स्वतंत्रता का समर्थन: गांधी जी प्रकृतिवादियों की तरह स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक थे तथा अहस्तक्षेप की नीति को स्वीकार करते थे। आत्मानुशासन को शासन से अधिक महत्वपूर्ण मानते थे। व्यक्ति अपने हितों का सर्वश्रेष्ठ संरक्षक होता है। यदि उसको स्वतंत्र तरीके से आत्मनियंत्रित होकर कार्य करने दिया जाए तो वह अपने हितों को सर्वोपरि करने का प्रयास करेगा। इस प्रकार समग्रता में सब के कल्याण में वृद्धि होगी।

10. स्वदेशी और आत्मनिर्भरता: गांधी जी 'स्वदेशी' पर बल देते थे। उपभोग के हर क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर होना चाहिए। तत्कालीन परिस्थितियों में भारत का व्यापार घाटा चिंता का विषय था, जबकि भारत में संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे। अंग्रेजों के पक्षपातपूर्ण व्यापार के कारण भारत के कृषि एवं उद्योग को बहुत क्षति पहुंचाई गई थी। स्वदेशी के नारे से भारत को पुनः आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया गया और राष्ट्र में उत्पादक चेतना विकसित करने का प्रयास किया गया।

इस प्रकार, अर्थ के क्षेत्र में नैतिक मूल्यों को समाहित करने का कार्य गांधी जी ने किया तथा जीवन के चरम लक्ष्य 'मोक्ष' को प्राप्त करने के लिए धन को साधन के रूप में स्वीकार किया। गांधी जी के आर्थिक विचार आदर्श स्वरूप हैं, जिनको व्यवहारिक स्वरूप दे पाना कठिन है, परंतु समाजार्थिक समस्याओं का समाधान इन्हीं विचारों में निहित है।

सोमवार, 28 अक्टूबर 2019

खालीपन और सूनापन...

खालीपन और सूनापन ...

      खालीपन में नीरवता का होना पाया जाता है,जिसमें सूनापन भी होता है।खालीपन है तो सूनेपन का होना भी जरूरी हो जाता है।खालीपन को विज्ञान की भाषा में निर्वात कहा जा सकता है,साहित्य में शून्य इसके समानार्थी के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।
       यदि कोई खाली है तो जरूरी नहीं कि वह खालीपन का शिकार है।यदि खाली है और खालीपन भी है तो सूनापन निश्चित रूप से आवश्यक नही।यदि विश्वाश नही है तो गांव घूम आइये।लोग खाली हैं पर खालीपन तो बिल्कुल भी नही और सूनापन तो रात के सन्नाटे में भी नही।
       जिस प्रकार खाली स्थान को भरने के लिए आस पास की हवा आ जाती है कुछ उसी प्रकार आपके खालीपन की अनुभूति कर कुछलोग आपके पास उपस्थित हो जाएंगे और खालीपन,सूनेपन को भरकर आपको सूनेपन जैसी गंभीर स्थिति से  बचाते हैं।
      गांव के आदमी की गजब की समस्या होती है।वह भरा हुआ होता है।उसकी चाहत होती है कि खाली हो जाय,थोड़ा खालीपन महसूस करे।पर हर आदमी भरा हुआ है।बेचैन है खाली होने के लिए।सुपात्र ढूंढ़ रहा है कि खाली हो जाऊं।एक खाली हुआ कि दूसरा उसे भर दिया।सारा दिन यह खेल चलता रहता है।
     खालीपन भरने के लिए किसी का भरा होना जरूरी नही है।कभी कभी दोनों ही खाली होते हैं और मिलकर भर जाते हैं।पति की अनुपस्थिति से उत्पन्न हुआ किसी स्त्री का खालीपन किसी परपुरुष से भर जाता है।इस खालीपन से विपरीतलिंगी अविवाहित  इतना अधिक हल्के हो जाते हैं कि उड़कर आस पास के खेत खलिहानों तक में पहुँच जाते हैं और खालीपन को भरकर चुपचाप घर आ जाते हैं।भरने की इस प्रक्रिया से उत्पन्न लालित्य की परिचर्चा से कितनो का सूनापन दूर हो जाता है।
      ईर्ष्या,द्वेष के कारण उत्पन्न माहौल गाँव को अक्सर सराबोर किये रहता है।इसके कारण अक्सर ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि "गांव युद्ध" छिड़ जाता है।अब ऐसी स्थिति में सूनापन की कल्पना कैसे की जा सकती है।
        "नशेड़ी समुदाय" तो सदैव से खालीपन और सूनेपन का विरोधी रहा है।इनके विरोध की सफलता को देखकर इस समुदाय की सदस्यता नित्यप्रति बढ़ती जा रही है।खालीपन को दूर करने के जब अन्य साधन साध्य की प्राप्ति नही कराते तो नशे में डूबकर खालीपन को एकदम भर दिया जाता है।कुछ लोग अन्य विधियों के प्रयोग की असफलता की प्रतिशतता को देखकर सीधे इसी विधि को प्राथमिकता देते हैं और अपने साधन,समय की बचत करते हैं।
     हर भरे हुए में एक खालीपन है,शून्य है,सूनापन है,पर हममें इतना साहस नहीं है कि हम उसे देख सकें,महसूस कर सकें,क्यूंकि हम डरते हैं खालीपन से,सच्चाई से,वास्तविकता से।
   
   
     
       

शनिवार, 26 अक्टूबर 2019

शुभ दीपावली...

हो रात घनी फिर भी  "दीपक",
      जलकर उजियारा करता है।
जलने का जख्म छुपाकर वह,
      रोशन गलियारा करता है।
बन सको पतंगा तो सायद,
      यह मर्म समझ में आएगा।
पर सावधान! है खेल कठिन,
      जान भी इसमें जाएगा।
"दीपक"की राख लगाकर लोग,
        बुरी नजर से बचा करेंगें।
बाला के गालों का टीका,
        "दीपक" सा फबा करेंगे।
 मैं प्रकाश हूँ, जीवन का आस हूँ,
         मैं हूँ प्रलय,मैं ही विनाश हूँ।
बदले की आग हूँ, प्रेम राग हूँ,
        ज्वाला में मैं, मैं ही आग हूँ।
तारों की टिम-टिम में मैं हूँ,
         मैं हूँ हर संकल्पों में।
क्यूँ ढूढ़ रहा विकल्पों में,क्यूँ ढूढ़ रहा विकल्पों में।


     

रविवार, 20 अक्टूबर 2019

जन्मदिन...

        जन्मदिन को हम स्वयं के दुनिया में आने के प्रतीक के रूप में मनाते हैं।यह प्रत्येक वर्ष मनाया जाने वाला व्यक्तिगत पर्व है,परंतु कुछ कर्मशील मानवता को इतना प्रभावित करते हैं कि यह व्यक्तिगत पर्व सार्वजनिक हो जाता है।
        महापुरुषों का जन्मदिन इसलिए मनाया जाता है कि हम उनके जीवन की उपलब्धियों को याद कर सकें और उसे अपने जीवन में अवतरित कर सकें।चाहे महिला हो या पुरुष,जब वह सामान्य मानव से महामानव बन जाता है तो उसे महापुरुष की संज्ञा दी जाती है।शक्ति एवं श्रेष्ठता का मतलब पुरूष, यही कारण है कि "महामहिला" शब्द को महापुरुष में ही समाहित कर दिया गया।
       व्यक्तिगत रूप से जन्मदिन मनाने का उद्देश्य भिन्न भिन्न हैं।कुछ लोग तो इसलिए मनाते हैं कि यह परंपरा के रूप में विकसित हो गया है तथा मृत्युभोज,प्रीतिभोज,बहूभोज की तरह सामाजिक कर्तव्यों में सामिल हो गया है।समाज में रहना है तो मर-जीकर इस परंपरा का निर्वहन करना है।
       दोस्तों में तो इसे मौज मस्ती और दावत उड़ाने के अवसर के रूप में देखा जाता है।यहां जन्मदिन की पार्टी  देनेवाला नहीं अपितु पार्टी लेने वाला ज्यादा सक्रिय होता है।कभी कभी तो पार्टी लेनेवाला ही दोस्ती और मौजमस्ती के नाम पर पार्टी दे देता है।
      ऑफिस में भी "बर्थडे" मनाने का नया चलन शुरू हुआ है जो विशुद्ध रूप से व्यावसायिक होता है तथा अक्सर उच्च पदस्थ लोंगो का ही मनाया जाता है।यहां का माहौल एकदम औपचारिक होता है,हंशी आती नही है बस मुस्कुराया जाता है।
        राजनीति में भी इसका बड़ा महत्व है।अपने पार्टी के नेताओं का जन्मदिन अद्वितीय महान व्यक्ति के रूप में मनाया जाता है।इसके माध्यम से अपनी राजनीतिक विचारधारा को प्रचारित प्रसारित करने का सोद्देश्य काम किया जाता है।इस दिशा में कुछ अग्रणी नेता जो तथाकथित महान कार्य करके महिला होते हुए भी महापुरुष की श्रेणी में आ गए अपने जन्मदिन को धनसंचय का माध्यम बना लिया।
       जन्मदिन का धार्मिक आधार यह है कि जो जीवन हम सफलता पूर्वक जी आये,इस दिन उस परमपिता को आभार प्रकट करें तथा शेष जीवन के लिए इस दिन परमपिता से आशीर्वाद प्राप्त करें।
       आध्यात्मिक रूप से जन्मदिन मनाने का महात्म्य यह है कि हम परमपिता से अलग होकर संसार में भटक रहे हैं,इसदिन खुस होते हैं कि प्रभु आपसे बिछड़ने के एक वर्ष और कम हो गए।अब वह समय निकट आ रहा है जब हमारा मिलन होगा।
      जन्मदिन संकल्प का दिन भी होता है जब हम जीवन के लक्ष्य के प्रति स्वयं को संकल्पित करते हैं तथा बड़े उद्देश्य के प्रति स्वयं को ऊर्जा से भरते हैं।
        

गुरुवार, 17 अक्टूबर 2019

तैयारी करता हूँ......



           मेरे जीवन में इस कथन का बहुत महत्व रहा है।बेरोजगारी में इस वाक्य ने किसी अन्य वाक्य,वस्तु या संबंध से ज्यादा सहारा दिया है और गर्व करने का अवसर प्रदान किया है।परंतु अधिक समय इस वाक्य का उपभोग करने के कारण तैयारी के अंतिम पड़ाव पर इस वाक्य का स्वाद कटु और तीक्ष्ण हो गया,इसके प्रयोग से अजीब किस्म की अकुलाहट होने लगी यही कारण है कि सुरुआत में एक प्रेयसी की भांति प्रेम होने के बावजूद अंतिम समय में इसके छूटने पर कोई अफसोस नहीं रहा।हालांकि कुछ जीवट व्यक्तित्व इसके छूटने से या तैयारी न कर पाने के कारण आज भी अफसोस करते हैं।पर मुझे तो मुक्त होने जैसी अनुभूति होती है।

         कभी "तैयारी करता हूँ" कथन हम सभी को गर्व से भर देता था जो टायर में हवा की भांति होता था जो दिखाई तो नही देता था पर अनुभूति होती थी।इस कथन के प्रयोग मात्र से शरीर ऐसे अकड़ जाता था कि किसी भी चिकित्सक को टिटनेस होने का भ्रम हो जाय।तैयारी करने वाले के साथ-साथ घर-परिवार,समाज भी तैयारी के चमत्कार से अप्रभावित नही रह पाता था तथा तैयारी के "रिसाव प्रभाव" का रसपान करता रहता था।कालांतर में इन्हें भी स्वाद कटु और तीक्ष्ण लगने लगता था,वजह तैयारी करने वाले पर थोप दी जाती थी।

           अब देखता हूँ तो बहुत परिवर्तन हो चुका है,हो भी क्यों नहीं।जब सब बदल रहा है तो "तैयारी करता हूँ "कैसे अपरिवर्तित रहे।पर बड़ी निराशा होती है जब यह देखता हूँ कि तैयारी शुरू करने वाले का आत्मविश्वास रसातल के सबसे निचले पायदान पर पहुंचकर और नीचे जाने को व्याकुल है।जो कभी गर्व के साथ कहा जाता था कि तैयारी करता हूँ,आज पूंछने पर इस तरह जवाब दिया जाता है जैसे किसी लड़की को देखने जाइये और नाम पूछिये तो मारे शर्म के गड़ जाय और पूरी शक्ति संचित करके कहे...........बाबली ।

मंगलवार, 15 अक्टूबर 2019

बहू




21वीं सदी...स्वतंत्रता, समानता, तीव्र, सतत एवं समावेशी विकास की सदी। इस सदी में बहू कहाँ है.... आज इसी पर बात करने का मन हो रहा है। पढ़े बेटी बढ़े बेटी का मूल भाव अपना दम तब तोड़ देता है जब यही पढ़ी लिखी बेटी बहू बन जाती है। उसके सर का भार इतना बढ़ जाता है कि वो बढ़ने की तो क्या सरकने की भी कोशिश नही कर पाती।

बहू अपने जीवन का सबसे समझदारी भरा, मर्यादित और औरतों का ही लिबास समझा जाने वाला 'लाज' भरा पहला कदम जब ससुराल में रखती है, वहीं से आलोचना सुरु हो जाती है। पहले ही कदम का इतना सूक्ष्म विश्लेषण कर दिया जाता है कि कोई भी सभ्य महिला अपने को असभ्य मानने लगे। जैसे बहुत तेज चलती है, तेज होगी, देखना बहुत जल्द ही अनियंत्रित हो जाएगी। बहुत धीमा-धीमा कदम रख रही है तो इसकी मीमांसा भी अनेक प्रकार से जैसे, बहुत धीरे-धीरे चल रही है, बाद में उड़ेगी या दीर्घसूत्री है, इनसे काम वाम नही हो पायेगा। कदम और चाल से चाल-चलन के इस रहस्यमयी ज्ञान के महत्त्व को यदि समझा गया होता तो निश्चित रूप से अपना चंद्रयान विफल न हुआ होता।

घर के सदस्यों का वरीयता क्रम इस तरह निर्धारित होता है कि इस क्रम के बीच में वाह्य व्यक्ति का प्रवेश असम्भव होता है। बहू चाहे जितनी उम्र की हो, चाहे जितनी पढ़ी लिखी हो, व्यवहारिक ज्ञान के चाहे जितने प्रमाण-पत्र उसके पास हों, ससुराल में प्रवेश करते ही सब व्यर्थ हो जाते हैं और वरीयता क्रम में वह सबसे निचले पायदान पर बिठा दी जाती है। परिवार के सबसे छोटे सदस्य को भी परिवार में जन्म लेने के कारण बहू को निर्देश देने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।

बाप दादा जो व्यवसाय करते थे वो उनके बच्चे उसे स्वीकार करें या कोई नया व्यवसाय चुनें इसकी आज़ादी होती है, पर बहुओं के लिए इसकी स्वतंत्रता 'लगभग' समाप्त कर दी गई, उन्हें उन कर्मों का वरण अनिवार्य बना दिया गया जो उनकी सास करती थीं। लगभग शब्द का चयन इसलिए कर रहा हूँ, क्योंकि कुछ क्रांतिकारी महिलाओं ने अपनी आजादी को अधिक महत्व दिया और उक्त बंधन को तोड़कर अपने लिए अपने अनुसार दुनिया में अपना स्थान बनाया, जिसे याद किया जाता है। बहुओं के लिए यदि स्वतंत्रता है तो केवल इस बात की कि वह अपने लिए नियत कर दी गई भूमिका को अपनी चमक खोकर और दमकाये और समाज की झूठी संवेदना अर्जित कर तसल्ली कर लें।

पाक कला में दक्ष बहू ससुराल में नई-नई रेसिपी से लोंगो का परिचय कराती है और परिणाम यह होता है कि कभी सब्जी के कलर के कारण पसंद नहीं किया जाता, तो कभी पनीर के टुकड़े का आकार पसंद नही किया जाता। सुबह की चाय और नास्ता तड़के पसंद करने वाले लोग भी रात का भोजन "अभी थोड़ी देर में खाऊंगा" कहकर देर रात भोजन ग्रहण कर बहू को अपने तरीके से आराम देने की भरपूर कोशिश करते हैं।

घर के सभी सदस्यों को कहीं भी आने जाने की आज़ादी होती है सिवाय बहू के। बहू को यदि कहीं जाना है तो अनजाने में ही सब के अंदर का अभिभावक जागृत हो जाता है, कुछ मुखर होकर प्रतिक्रिया दे देते हैं कि यह अनुचित है तो कुछ देश की अन्य समस्याओं में अपना कोई योगदान न दे पाने की विवशता की आदत से उपजी "मौन शक्ति" की प्रवृत्ति के कारण इस घनघोर समस्या पर मौन रह जाते हैं।

संस्थाओं को इसका आकलन करना चाहिए कि कितनी बहुएं हैं जो अपना कैरियर बना सकी हैं। मेरा तो अनुमान यही है कि नगण्य के बराबर ही महिलाओं ने बहू की भूमिका में कोई अन्य कैरियर विकल्प चुना होगा। लड़कियां जब हर क्षेत्र में अपना स्थान बना रहीं है तो बहू क्यों नहीं? इसका सीधा सा मतलब है कि उन्हें अवसर नहीं मिल रहा है। उनके अंदर की क्षमता का प्रयोग उचित मंच पर हो तो उत्पादकता बढ़ेगी, आत्मनिर्भरता आएगी और राष्ट्र निर्माण होगा। तथाकथित राष्ट्र भक्त इस दिशा में भी सोंचे।

रोल (भूमिका) और रूल (नियम) जब सब के लिए शिथिल हुए हैं तो बहुओं के लिए क्यों इतने कठोर बने हुए हैं? सायद इसलिए क्योंकि वह सह रही हैं। पर कब तक.......परिवार की जिम्मेदारी केवल उनके अकेले की नही है, परिवार के सभी सदस्य की है। जिम्मेदारी की बात जब होती है तो बहू सबसे आगे, जबकि सच्चाई यह है कि परिवार में उसे या तो शामिल ही नही किया जाता या सबसे निचले पायदान पर रखा जाता है। दिल तो उसका तब टूट जाता है जब "पति परमेश्वर" द्वारा यह कहा जाता है कि मेरा परिवार सबसे पहले है। क्या अर्थ है इसका? इसका यही अर्थ है कि परिवार में वही लोग शामिल हैं जो उसमें जन्म लेते हैं। बहू तो केवल परिवार में जन्म देती है।

परिवार को सदैव यह डर सताता रहता है कि कहीं बहू के कारण अलगाव न हो जाय। समझ में नहीं आता जो प्राकृतिक रूप से सच है उसे स्वीकार क्यों नही कर लिया जाता। यह प्रक्रिया है और प्रकृति के मूल में है। थोड़े समय के लिए हम उसे टाल भले ही दें पर रोक नही सकते। प्रकृति हमें पूरा अवसर देती है कि जो बुद्धि और विवेक आपको दिया गया है उसका प्रयोग करके अपनी सुविधानुसार घटना को घटने दें नही तो आपके न करने से प्रकृति नाराज होकर बड़े भयानक तरीके से अपने उद्देश्य को पूरा करने लगती है। अलग होने की इसी प्राकृतिक प्रक्रिया को पूरा करने के लिए जर्रा- जर्रा कोशिश करने लगता है, परिवार का हर सदस्य विघटन की प्रक्रिया में लग जाता है, बस दोषी बहू हो जाती है। बुद्धिमानी पूर्वक "उचित दूरी" का पालन करके अलगाव की समस्या से निपटा जा सकता है अन्यथा की स्थिति में महाभारत के लिए मार्ग खुला है।

अंततः उन सब के लिए मेरी चुनौती, जिन्हें यह लगता है कि बहू दोषी है........एक दिन के लिए बहू बनकर दिखाएं।

शनिवार, 12 अक्टूबर 2019

पतंग जिसे हम डोर के सहारे उड़ाते हैं....कभी गौर करिये,हमारे द्वारा ही यह भी तय कर दिया जाता है कि वह कितना ऊँचा उड़ेगा।उड़ाते भी हैं हम और उसे और ऊँचा उड़ने से रोकते भी हैं।
       

  More Hours, Less Output? Unpacking the Flawed Economics of the 70-Hour Work Week A recent proposal from Infosys Founder Narayan Murthy has...