रविवार, 23 अगस्त 2020

New Education Policy

 

                   New Education Policy
           राम आसरे के पिताजी को न्यू एजुकेशन पॉलिसी में "न्यू" से घोर आपत्ति है। इस न्यू में उन्हें सत्ता पक्ष की गहरी चाल दिखाई देती है।राम आसरे के पिताजी का मानना है कि जिस प्रकार 1991 में नई आर्थिक नीति बनी और वह आज भी नई ही बनी हुई है,उसी प्रकार कहीं यह नई शिक्षा नीति भी चिरकालिक नई न बन जाय।
              उधर राम आसरे नई शिक्षा नीति में एंट्री और एग्जिट को अधिक सुगम बनाए जाने से अत्यंत प्रसन्न हैं।जो पढ़ाई उन्हें नहीं छोड़ पा रही थी,उसे छोड़ने का अवसर नई शिक्षा नीति ने इन्हें प्रदान कर दिया था।इसे वे अपने दोस्तों के साथ सामूहिक रूप से मय मदिरा के एन्जॉय कर रहे थे।मदिरा के सहारे मैत्री भाव के पराकाष्ठा पर पहुंचकर निहोर ने राम आसरे के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,"यार रामू अगर नई शिक्षा नीति में ग्यारहवीं के बाद एग्जिट करने पर भी प्रमाणपत्र की व्यवस्था होती तो कितना अच्छा होता।"पीने के बाद नीहोर किसी को भी खुद से तथा अपने नाम से बड़ा नहीं होने देता था, इसीलिए राम आसरे रामू हो गया था।
               यह सुनकर राम आसरे का नशा एकदम से उतर गया।राम आसरे दो साल से इंटर नहीं पास कर पा रहे थे।नई शिक्षा नीति से राम आसरे ठगा सा महसूस कर रहा था।

बुधवार, 24 जून 2020

स्वदेशी

            बॉर्डर पर भारत चीन सैनिकों के झड़प के बाद राम आसरे के पिताजी पूर्ण स्वदेशी हो चले।आज कल देशी पर उतर आए हैं।आलोचक इसे लॉक डाउन से हुई आय में कमी को कारण बताते हैं,परंतु राम आसरे के पिताजी इसे स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की दिशा में अपना प्रयास बताते हैं।       
          इधर राम आसरे दुविधा की स्थिति में था।मन तो उसका भी आम भारतीय की तरह देशभक्ति से ओत था,परंतु प्रोत होने की शर्त पूरी नहीं कर पा रहा था।दरअसल देशभक्ति से ओतप्रोत होने के लिए देश से प्रेम होना परम आवश्यक है लेकिन राम आसरे प्रेम किसी और से कर बैठे थे।शैक्षणिक संस्थाओं और सर्विस कमीशन के अतरिक्त प्रेम भी परीक्षा लेता है।राम आसरे को प्रेम की परीक्षा देनी थी और इसमें वह फेल नहीं होना चाहता था।राम आसरे की प्रेमिका ने एक डिमांड रखी थी कि उसे "बढ़िया वाला मोबाइल" चाहिए। राम आसरे अपने स्रोतों से पता किया तो इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि सस्ते में सभी बढ़िया मोबाइल चीन निर्मित ही है।
             राम आसरे ने redmi note 7 pro मोबाइल लिया और चल पड़ा अपनी प्रेमिका को गिफ्ट करने।प्रेमिका मोबाइल देखकर एकदम पगला गई और जोर का चित्कार करते हुए मोबाइल राम आसरे के मुंह पर दे मारी।"करे कामीना तोका चीन क ही मोबाइल मिला" राम आसरे की प्रेमिका ने कहा।
            राम आसरे को महसूस हुआ कि किसी चीनी सैनिक ने कांटेदार लाठी से उसके मुंह पर प्रहार किया हो।रक्त राम आसरे के मुंह से बाहर आ रहा था।

बुधवार, 29 अप्रैल 2020

मूल



        
             घर के सामने हाईवे और हाईवे पर लोगों का झुंड। आप सोच रहे होंगे कि लॉकडॉउन के पहले की बात कर रहा हूं। जी नहीं यह लॉकडाउन की ही बात है। एक महीने से अधिक हो चुके लॉकडाउन से उपजी विवशता और भावुकता का मारा ये वास्कोडिगामा का दल है जो नई दुनिया की नहीं बल्कि अपने घर,अपने मूल की खोज में निकल पड़ा है।
              जब कभी ये घर से निकले थे तब भी विवशता ही थी।गरीबी की निरपेक्ष भारतीय परिभाषा के आधार पर न्यूनतम कैलोरी की आवश्यकताओं की आपूर्ति न हो पाने की विवशता।यही विवशता ही है जो इन्हें यह भरोसा नहीं दे पा रही है कि सरकार इनके खाने पीने की व्यवस्था कर देगी।दरअसल सरकारी दावों को अभी तक ये झूठ होते हुए ही देखे थे,सो वर्तमान में सरकार द्वारा दिए जा रहे आश्वासन पर इनका विश्वास नहीं बन पा रहा।न्यूज चैनलों पर हकीकत से ज्यादा कोरोना की बर्बादी और आभासी दुनिया के झूठ ने इन्हें एन केन प्रकारेण घर पहुंचने को विवश कर दिया है।
              ये पूरी भीड़ है,पूरा कारवां है, जिसमें बच्चे हैं महिलाएं हैं। कुछ घर पहुंच गए हैं, कुछ की मंजिल अभी भी दूर है, कुछ संसार की यात्रा से थक हार कर अनंत यात्रा पर निकल चुके हैं।शेष को लाने की सरकार की तैयारी चल रही है।आप सोच रहे होंगे कि तैयारी में इतनी देर क्यों?तो भैया ये तैयारी है और तैयारी में देर होती ही है।यह ज्ञान हमें सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के दौरान हुआ था।
         आजा उम्र बहुत है छोटी,
             अपने घर में भी है रोटी.......चिट्ठी आयी है।

रविवार, 12 अप्रैल 2020

कोरोना त्रासदी में आम जन की भूमिका

कोरोना त्रासदी में आम जन की भूमिका.....
     उक्त विषयक कुछ लिख रहा हूं,इससे स्पष्ट है कि जिंदा हूं,क्यूंकि लाशे लिखा नहीं करतीं।आगे भी लिखता रहूंगा या नहीं यह केवल मेरे प्रयास से संभव नहीं है अपितु इसका उत्तर सामूहिक प्रयास में निहित है।कोरोना जो आज एक वैश्विक महामारी का रूप धारण कर चुका है,इसे सामूहिक प्रयास से ही समाप्त किया जा सकता है।इसलिए इस मानव त्रासद में आम जन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
       कोरोना स्वयं में अनोखी त्रासदी है जिससे लड़ा तो सामूहिक जाएगा परंतु समूह से दूर रहकर।यही सबसे बड़ी चुनौती है।जब-जब मानवता पर संकट आया है हमारे रण बांकुरे और वीरांगनाएं मिलकर लड़े हैं और बड़ी से बड़ी चुनौती का मिलकर सामना किया है तथा विजय पाई है।परंतु,महामारी एक ऐसी चुनौती होती है जिससे थोड़े समय के लिए अलग होकर जिसे "सोशल डिस्टेंसिंग" कहा जा रहा है,लड़ा जाता है।आज की चुनौती सामूहिक है और इससे सामूहिक रूप से ही निपटा जा सकता है। आवश्यकता समूह से दूरी बनाने की नहीं बल्कि उचित और पर्याप्त दूरी बनाने की है।
          अरस्तू का महत्वपूर्ण कथन कि, "मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है"तथा वह समूह में रहना पसंद करता है। लेकिन इसी के साथ यह भी सही है कि मनुष्य एक समझदार प्राणी भी है। आज जरूरत है समझदारी से काम लेने की। मानवता का भविष्य इस समय इसी समझदारी पर टिका हुआ है कि हम लोग कुछ समय के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। इस संकट की घड़ी में हमें जो कुछ करना है उसके लिए कहीं से प्रशिक्षण प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है। हमारे देश में यह हमारे जीवन प्रणाली का हिस्सा रहा है, जिसे हम भौतिकता के चक्कर में तथा पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण में भूलते जा रहे हैं। आज पूरी दुनिया नमस्ते जैसे अभिवादन को स्वीकार कर रही है। यह हमारे जीवन प्रणाली का हिस्सा है, अभिवादन में नमस्ते,राम-राम हम यही तो करते हैं। हाथ को साफ रखना तथा साफ-सफाई करना यह भारतीय संस्कृति के लिए कोई नई चीज तो नहीं है। भोजन को ईश्वर तुल्य समझा जाता रहा है तथा रसोई को भगवान। बस यही भारतीय संस्कृति की स्वस्थ परंपराओं का हमें आज और आगे भी अनुपालन करना है।
        भारतीय मनीषियों द्वारा हमें योग का ऐसा धरोहर दिया गया है जिसके माध्यम से हम अपना आत्मिक और शारीरिक विकास कर सकते हैं,स्वस्थ रह सकते हैं तथा एक स्वस्थ भारत का निर्माण कर सकते हैं। योग के माध्यम से हम अपनी भावनाओं पर भी नियंत्रण कर सकते हैं, जिसकी आज बहुत आवश्यकता है। प्रत्येक व्यक्ति कोरोना की भयावहता से डरा हुआ है। संकल्प को मजबूत करके इस डर को दूर किया जा सकता है और इस संकल्प को मजबूत करने में योग बहुत सहायक सिद्ध हो सकता है। मेडिटेशन,संगीत हमें एकांत में रहने के लिए सहायता प्रदान कर सकते हैं।
        संकट की इस घड़ी में भौतिक दूरी को भले ही समर्थन दिया जा रहा हो,परंतु मानसिक एकता बहुत ही आवश्यक है। मानसिक रूप से पूरे देश को एकजुट होना होगा। कुछ लोग हैं जो संकट की इस घड़ी में भी अपने निहित स्वार्थों के कारण सरकार और व्यवस्था के समक्ष कोरोना से इतर समस्याएं उत्पन्न कर रहे हैं जो कोरोना से लड़ने की ताकत को क्षीण कर रहा है। ऐसे लोग स्पष्ट हो लें की जब समस्त मानवता संकट में होगी तो उनके लिए कहां स्थान होगा। अतः सभी लोगों को मतभेद और मनभेद भुलाकर इस लड़ाई में एकजुट होकर सरकार का सहयोग करना चाहिए और सरकार के आदेश एवं निर्देशों का अनुपालन करना चाहिए।
        कोरोना से लड़ने के लिए संस्थाओं एवं वैश्विक संगठनों द्वारा जो भी उपाय सुझाए जा रहे हैं वह तभी सफलीभूत होंगे जब आमजन उनका अनुपालन करेंगे। आज बच्चे, बूढ़े और जवान सभी सैनिक हैं तथा हमारा दुश्मन कोरोना है। एक भी सैनिक कमजोर हुआ तो लड़ाई जीती नहीं जा सकती। घर,परिवार, समाज की रक्षा लोगों से मिलकर नहीं बल्कि दूर रहकर की जा सकती है। ऋषि मनीषियों के संदर्भ में यह एक जनश्रुति है कि मानवता के कल्याण के लिए वह गुफाओं में बैठकर साधना करते हैं। क्या हम घर में बैठ कर मानवता के कल्याण के लिए अपना योगदान नहीं कर सकते हैं?इस विषय में सब को सोचना चाहिए।
        आइए संकल्प लें जब तक स्थितियां अनुकूल नहीं हो जाती हम सब मिलकर सोशल डिस्टेंसिंग का अनुपालन करेंगे तथा जो भी एडवाइजरी जारी की जाएगी उसका पूरी सामर्थ्य से पालन करेंगे।
   
                            दीपक कुमार सिंह
                                   (असिस्टेंट प्रोफेसर,अर्थशास्त्र)
                            हंडिया पी जी कॉलेज,प्रयागराज।

पी एम केयर्स


                           
जानामि धर्मं न च मे प्रवृत्तिर्जनाम्यधर्मं न च मे निवृत्तिः |
‘मैं धर्म को जानता हूँ, पर उसमें मेरी प्रवृत्ति नहीं होती और अधर्म को भी जानता हूँ, पर उसमें मेरी निवृत्ति नहीं होती |
       यह प्रसंग महाभारत का है। कृष्ण के धर्म उपदेश के बाद दुर्योधन ने यह कथन कहा था। कृष्ण ने भी अर्जुन को उपदेश देते समय कहा था कि "प्रवृत्ति ही बरत रहा है।"कुल मिलाकर लब्बोलुआब यह है कि व्यक्ति अपनी प्रवृत्ति के अनुसार कार्य करने को आबद्ध है।
         राम आसरे के पिताजी अपनी प्रवृत्ति के अनुसार आचरण करने को आबद्घ थे। प्रवृत्ति उनकी दान की नहीं भोग की थी। हालांकि कोरोना संकट के बाद उत्पन्न आर्थिक हालात से प्रभावित होकर आज पीएम केयर्स में दान करने की उनकी इच्छा हुई थी। परंतु प्रवृत्ति का दास होने के कारण मनुष्य उसके विपरीत कुछ भी करने में सक्षम नहीं होता। राम आसरे के पिताजी के दान की इच्छा गर्म तवे पर डाले गए जल की बूंदों के समान गायब हो गई। उनके मन में यह तर्क आया कि जब प्रधानमंत्री राहत को ष पहले से ही था तो एक अलग कोष बनाए जाने की क्या आवश्यकता थी। चाहते तो इस प्रश्न का समाधान वह व्यक्तिगत स्तर पर कर सकते थे लेकिन उनके मन में डर यह था कि कहीं इस प्रश्न का कोई वाजिब जवाब मिल गया तो वह अपनी प्रवृत्ति के अनुसार कार्य नहीं कर पाएंगे। इसलिए इस प्रश्न के समाधान के लिए उन्होंने कोई प्रयास नहीं किया।
             परंतु, इससे यह नहीं मान लेना चाहिए कि राम आसरे के पिताजी के मन में कल्याण की भावना नहीं थी। लॉकडाउन के बाद से वे मदिरापान नहीं कर पाए थे। मदिरापान ना कर पाने के कारण उनके शरीर की सारी कोशिकाएं उन्हें धिक्कार रही थी। कोशिकाओं के न्यूनतम आवश्यकताओं की आपूर्ति में असफल राम आसरे के पिताजी स्वयं को लज्जित महसूस कर रहे थे। सो आज उन्होंने ठान लिया कि चाहे जितनी कीमत देने पड़े लेकिन वह आज कोशिकाओं को उनका मौलिक अधिकार दिला कर रहेंगे। बड़ी मुश्किल से दोगुने दाम पर एक खंभे की व्यवस्था कर पाए। राम आसरे के पिताजी आज पहली बार मोदी के समानांतर खुद को महसूस कर रहे थे। जहां एक और मोदी देश के करोड़ों लोगों को की आवश्यकताओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध दिख रहे थे तो वहीं राम आसरे के पिताजी अपने करोड़ों कोशिकाओं को संतुष्ट करने के लिए समर्पित थे। वास्तव में संकल्प शक्ति और उसके क्रियान्वयन में वह मोदी जी से बीस ही थे।
          इस प्रकार अपने संचित धन का अपनी प्रवृत्ति के अनुसार उपयोग हो रहा था,प्रवृत्ति ही बरत रहा था।

गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

लॉक डाउन में भाई साहब ससुराल में

 सौभाग्य और दुर्भाग्य समय सापेक्ष है। कब आपका सौभाग्य,दुर्भाग्य में बदल जाए कहा नहीं जा सकता। हमारे एक जानने वाले पहली बार ससुराल गए,तारीख थी 20 मार्च 2020। पहली बार ससुराल गए थे तो सेवा सत्कार जामकर हो रहा था। बेचारे आजीवन सबसे तिरस्कार ही सहे थे, सत्कार पाकर भाव विह्वल थे। 21 को घर वापसी की योजना थी, परंतु माताजी के प्रेम ने उन्हें रोक लिया। रुकते भी क्यों ना पहली बार मातृप्रेम जो मिल रहा था। ऐसा नहीं है कि भाई साहब के मां नहीं थीं,परंतु अपनी मां से वह प्रेम नहीं प्राप्त कर पाए थे जो आज प्राप्त कर रहे थे।
       भाई साहब को ससुराल में बड़ा आनंद आ रहा था उनका मन हो रहा था कि यही रुक जाएं और कभी वापस तिरस्कार क्षेत्र में ना जाएं। पहली बार ईश्वर ने उनके मन की सुनी और मोदी के वचन में प्रकट होकर 22 तारीख दिन रविवार को 'जनता कर्फ्यू' की घोषणा कर दी। भाई साहब डरे हुए थे कि घर जाकर क्या जवाब दूंगा, परंतु जब साली साहिबा ने लजाते हुए नजरें झुका कर यह कहा कि,"जीजा जी रुक जाइए ना", तो भाई साहब को घर वालों को जवाब देने की ताकत और रुकने की वजह मिल गई। अब चाहे कुछ भी हो जाए भाई साहब वहां से सरकने वाले ना थे।
       सुबह का नाश्ता,दोपहर का भोजन,शाम का नाश्ता, रात्रि का भोजन,भाई साहब के क्या कहने थे। उस पर सालियों के साथ हंसी-ठिठोली तो जैसे स्वर्गीय आनंद दे रहा था, बस भाई साहब स्वर्गीय नहीं थे। वैसे भाई साहब बड़े शर्मीले स्वभाव के थे, पर सालियों को कनखियों से देखते हुए शर्माना बड़े-बड़े शर्मीले लोगों को शर्मिंदा कर देने जैसा था। इसी खुशनुमा माहौल के बीच मोदी जी ने घोषणा कर दी "21 दिन का लॉक डाउन"। दिन बड़े अच्छे से बीत रहे थे भाई साहब के।
          भाई साहब का सौभाग्य दुर्भाग्य में बदलने वाला था। हुआ यूं कि सास माता का स्वास्थ्य खराब हो गया। यद्यपि घर में और लोग थे जो बाहर जा कर दवा ला सकते थे, लेकिन भाई साहब यह जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लिए। लाख मना करने पर भी भाई साहब नहीं माने। जब बाहर निकल रहे थे तो कनखियों से उन्होंने साली साहिबा को देखा।साली साहिबा की नजरें बता रही थी कि भाई साहब ने जिस उद्देश्य से यह जिम्मेदारी अपने ऊपर ली थी उसमें वह सफल हो गए थे। घर से 2 किलोमीटर दूर बाजार था जहां से दवा लानी थी। अभी 1 किलोमीटर ही आगे आए थे कि पुलिस की गाड़ी आ गई। पुलिस वालों ने ना आव देखा ना ताव भाई साहब को जमकर धर दिए। भाई साहब जब तक घर से बाहर निकलने का कारण बता पाते तब तक कई लाठियां पड़ चुकी थी।
           भाई साहब लाक तो कई दिन से थे, पर डाउन आज हुए थे। इस तरह लाक डाउन आज पूर्ण हुआ था। भावुकता में आंसू आ गए थे भाई साहब को। किसी तरह दवा लेकर घर पहुंचे भाई साहब। उनका किसी से बात करने का मन नहीं हो रहा था। नजरें कनखियों की ओर नहीं जा पा रही थीं, बस एकटक जमीन पर टिकी थीं।म्यूजिक सिस्टम पर गाना बज रहा था,"मैं ससुराल नहीं जाऊंगी......।"

रविवार, 5 अप्रैल 2020

आतिशबाजी

                          आतिशबाजी
           कोरोना चीन से चिंग चंग चुंग करता हुआ तथा देश दुनिया का भ्रमण करते हुए जब भारत में प्रवेश किया तो बड़ा उत्साहित था। यहां चीन जैसा जनसंख्या का बेस था जिस पर वह बर्बादी का इतिहास लिखने के लिए तैयार था और साथी थे तबलीगी जमात। कोरोना जहां जाता वहां की स्थानीय भाषा को अख्तियार कर लेता ताकि कार्यवाही में आसानी हो। तबलीगी जमात के सहयोग से कोरोना प्रतापगढ़ में प्रवेश कर गया। उसके प्रवेश की सूचना पर शासन ,प्रशासन और आम लोगों में दहशत फैल गई।
            आगे की कार्यवाही के लिए तबलीगी जमात के सदस्यों के साथ कोरोना की मीटिंग चल ही रही थी कि अचानक से सारी लाइटें आफ हो गईं, उसके बाद टिम-टिम करते दिए जल उठे।कोरोना के सरदार और उसकी टीम को समझ में ही नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है। "ई का वा हो"  टीम के सरदार ने पूंछा।"अरे ई मोदिया सबसे अपील केहे रहा कि आज सब दिया जलाईह" एक सदस्य ने जवाब दिया। अभी ऐसा वार्तालाप चल ही रहा था कि धड़ाम धड़ाम की आवाज आने लगी। आसमान में आतिशबाजी होने लगी। सारे कोरोना को जैसे गोली सा लगने लगा।
           करोना का सरदार सीना पकड़कर तड़पते हुए बोला,"करे सरवा ऊ त केवल दिया जलावे के लिए कहे रहा त ई आतिशबाज़ी कैसे होय लाग।"मुखिया ने जासूस और तबलीगी जमात की ओर शक की निगाहों से देखा। परंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी सभी को रोना आतिशबाजी के साथ तड़प-तड़प कर मरने लगे। सरदार ने तबलीगी जमात की ओर देखते हुए अपने अंतिम शब्द बोले,"देख बे भो....के अब त जीतने कोरोना बाहर हैं ऊ सब साले त ई आतिशबाज़ी में नीपुरि जयही।अब तोहरे टीम क ऊपर भरोसा ब कि हमरे मिशन क अंजाम तक पहुंचावा।एक चीज और ई जरूर पता कीह कि दिया के साथ आतिशबाजी क कौने क प्लान रहा।"इतना कहने के उपरांत सरदार का स्विच ऑफ हो गया।
            इस प्रकार आज की आतिशबाजी से बाहर के सारे कोरोना मारे गए लेकिन खतरा अभी टला नहीं है अंदर वह अब भी मौजूद हैं। अब उनके ऊपर सबसे ज्यादा खतरा है जिन्होंने आतिशबाजी का प्लान किया था।
          

शनिवार, 4 अप्रैल 2020

राम आसरे का टेस्ट नेगेटिव

              राम आसरे को उसके लक्षणों के आधार पर क्वारांटाइन में रखा गया था। आज उसके कोरोना टेस्ट के रिजल्ट आने की संभावना थी। कोरोना का तो पता नहीं पर मारे डर के उसका गला सूखा जा रहा था। गला सूखने से उसका डर और बढ़ता जा रहा था क्योंकि इस रोग में गला सूखना एक लक्षण था। राम आसरे स्पष्ट महसूस कर रहा था कि उसके हृदय की धड़कने उसके कान में शिफ्ट हो गई हैं।धक धक धक धक उसके सीने के बजाय कान में हो रहा था।
              राम आसरे का दिल बैठा जा रहा था। तभी डॉक्टर कमरे के अंदर प्रवेश किया और राम आसरे को बधाई देते हुए बताया कि उसका रिजल्ट नेगेटिव आया है। राम आसरे प्रसन्न होने के बजाय डर गया। उसे लगा कि उससे कुछ छुपाया जा रहा है। नेगेटिव तो जीवन में कभी भी अच्छा नहीं रहा है, उसने यही सुन रखा था। पिताजी  भी यही कहकर गरियाया करते थे कि एक नंबर का नेगेटिव आदमी है,बेकार है,जीवन में कुछ नहीं कर पाएगा। इधर उसके डिस्चार्ज किए जाने की तैयारी होने लगी। राम आसरे भयभीत हो गया उसे लगा कि हो ना हो यह लोग उसे जलाने या दफनाने के लिए ले जा रहे हैं।
             राम आसरे हॉस्पिटल में बवाल खड़ा कर दिया। वह जोर जोर से चिल्ला रहा था कि मुझे हॉस्पिटल छोड़कर कहीं नहीं जाना है।सब लोग मुझे मारना चाहते हो।जब मेरा रिजल्ट नेगेटिव आया है तो मुझे बाहर क्यों भेजा जा रहा है। मेरा इलाज करिए मैं कहीं नहीं जाऊंगा। बहुत समझाने के बाद भी राम आसरे अपनी बात पर अड़ा रहा। अंततः पुलिस को बुलाया गया। लाठी के एक ही प्रहार में राम आसरे चुपचाप गाड़ी में जाकर बैठ गए और घर पहुंचा दिए गए।
             व्यावहारिक जगत का सत्य सापेक्षिक है। कभी-कभी नेगेटिव होना पॉजिटिव होने से ज्यादा अच्छा होता है। तालाब के किनारे बैठ कर क्षितिज पर ढलते सूर्य को देखते हुए राम आसरे इसी सत्य को महसूस कर रहा था।
             

बुधवार, 25 मार्च 2020

लॉकडाउन


                             लॉकडाउन
             राम आसरे सरकार के निर्देशों का पालन करते हुए इधर 'किस' की जगह छत पर खड़े होकर "फ्लाइंग किस" से काम चला रहा था।इस प्रकार "सोसल डिस्टेंसिंग" का राम आसरे अपने तरीके से पालन कर रहा था,परंतु आज कुछ चिंतित सा लग रहा था।चिंता का कारण न्यूज चैनल का ब्रेकिंग न्यूज के नाम पर अप्रमाणित न्यूज था, जिसमें यह कहा गया था कि कोरोना हवा में घंटों जीवित रहता है।राम आसरे को शक हो रहा था कि कहीं फ्लाइंग किस से कोरोना के लपेटे में न आ गया हो।
                  इधर पिछले दिन से गले में खराश की भी सिकायत राम आसरे को थी और आज सुबह उठते ही 2 बार क्षींक भी आई थी।राम आसरे का दिल बैठा जा रहा था।सभी लक्षण उसके अनुसार कोरोना की ओर संकेत कर रहे थे।मन ही मन राम आसरे गुलाबो को गरियाए पड़ा था कि साली बाहर न निकलती तो फ्लाइंग किस वाला लफड़ा न फसा होता।उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे।अचानक उसके अंदर का सैतान जागृत हुआ।राम आसरे ने तय किया कि अकेले न मारूंगा,अपने साथ कईयों को ले जाऊंगा।
               राम आसरे,जो अभी तक कमजोर लग रहा था, उसमें शैतानी ताकत आ गई।सबसे पहले उसने सबसे बड़े विरोधी अपने पिताजी को टारगेट किया और उनके पास जाकर नाक में सींक डालकर जोरदार छींक मारी।पिताजी धुत नशे में भी फुर्ती से अक़बकाकर खड़े हो गए और राम आसरे को जोरदार तमाचा जड़ दिए।राम आसरे इस त्वरित कार्यवाही का अंदाजा नहीं लगा पाए थे,इसलिए संभल न सके।पिताजी ने जोरदार अश्लील गर्जना की, "भाग मादर...।"राम आसरे चपलगती से पलायन कर गए।पुलिस और मेडिकल की टीम राम आसरे को खोज रही है।
              आप लोग भी २१ दिन(संक्रमण की अवधि) तक अपने घर में ही रहिए कहीं राम आसरे से भेंट न हो जाय।
         
              
            

सोमवार, 9 मार्च 2020

बुरा न मानो होली है

                        बुरा न मानो होली है
                 कोरोना वायरस के कहर ने एक सूक्ष्म ज्ञान से सबको परिचित कराया कि वही सेनेटाइजर कारगर है जिसमें 60 प्रतिशत या उससे अधिक एल्कोहल हो।राम आसरे के पिताजी अपनी प्रतिरोधक क्षमता के प्रति आश्वस्त थे,क्योंकि एल्कोहल के प्रति उनका गहरा अनुराग था और वे 60 प्रतिशत के मानक को जबरदस्त ढंग से पूरा करते थे।आज होली के अवसर पर तो इतना एल्कोहल अंदर घुसेड़ लिए थे कि आस पास के लोग भी कोरोना  से सुरक्षित महसूस कर रहे थे।
                राम आसरे के पिताजी होली के अवसर पर "पेय" की प्रासंगिता तथा इस त्योहार के इसी समय आने की व्यावहारिकता से सभी को परिचित करा रहे थे।उनके अनुसार सार्स,मार्स,बर्ड फ्लू,स्वाइनफ्लू और अब कोरोना आदि सब ठंडी में और चीन से फैलते है।चीन से इन संक्रामक रोगों को भारत में आते आते फरवरी हो जाता है।इसी समय के बाद यहां होली की परम्परा रखी गई है।इस पर्व पर सबको पीने की छूट इसीलिए दी गई है ताकि एल्कोहल  से संक्रामक रोगों से बचाव किया जा सके।
                होली पर्व की रंगीन व्याख्या टल्ली समाज सदैव की भांति आश्चर्यचकित होकर निर्विकारपूर्वक श्रवण कर रहा था।इतने में राम आसरे अपनी टोली के साथ देश की अर्थव्यवस्था की भांति लड़खड़ाते हुए नशे में धुत पिताजी के पास पहुंचा और बचे हुए गुलाल को पिताजी के चेहरे पर मलते हुए बोला," बुरा न मानो होली ह..…."।वाक्य पूरा हो नहीं पाया था कि अंदर का सारा माल पिताजी के चेहरे पर आ गया और राम आसरे वहीं लुढ़क गया।

                      Deepak Kumar Singh
                                (Assistant professor)
                       Handia P.G. College.
               
                 

रविवार, 16 फ़रवरी 2020

हम होंगे कामयाब

                          हम होंगे कामयाब
                    "हम होंगे कामयाब एक दिन........" दिल्ली का चुनाव जीतने के बाद राम लीला मैदान में शपथ ग्रहण करने के बाद अरविंद केजरीवाल का यह गाना राम आसरे को भीतर से नाभिकीय संलयन होने जैसा महसूस करा रहा था।राम आसरे के अंदर का नेता बाहर आने को तड़प रहा था कि इतने में पिताजी जोर से पादते हुए दूसरी ओर करवट बदल लिए। पाद की ध्वनि का डेसीबल इतना था कि राम आसरे के भीतर बैठा नेता डर के मारे कांप उठा।राम आसरे अपने भीतर के नेता को ढूंढने की कोशिश करने लगा,पर वह नहीं मिला।
                         राम आसरे के पिताजी का यह कृत्य केजरीवाल को यह संकेत था कि आप कामयाब हो सकते हो आपकी पार्टी "आप" कामयाब हो सकती है,परंतु आप जैसों के कथन से देश के भीतर उठने वाली प्रेरणा अस्थाई भाव वाली है जो पाद बराबर है।पिताजी के पूरे जीवन का अनुभव पाद के रूप में ध्वनित हुआ था।
                         राम आसरे पाद के इस मर्म को समझ नहीं पाया और पाद की विषाक्तता के कारण घर से बाहर निकल आया।बाहर निकलने पर उसे कामयाब होने जैसी फीलिंग आयी।जोर की सांस लेकर राम आसरे ने खुद को नॉर्मल किया।आगे बढ़ा तो देखा कि नीहोंर अपनी टोली के साथ ताश खेल रहा है।राम आसरे को कामयाब होने के लिए मैदान मिल चुका था।फिर क्या था माहौल चप गया,दे बाज़ी पे बाज़ी।
                          राम आसरे का परफॉर्मेंस आज बेहद अच्छा था।आज उसने पिपक्ष को अच्छी पटखनी दी थी।रोज हार खाने वाला राम आसरे आज मैदान मार चुका था।सब आश्चर्य चकित थे।खेल समाप्त हुआ,सब घर की ओर चल दिए।राम आसरे इस उपलब्धि पर इतराता हुआ "हम होंगे कामयाब" गाता हुआ चला जा रहा था.....रुका तो देखा कि सामने लिखा था.......ठहरिए यही है मधुशाला।
                     

शनिवार, 25 जनवरी 2020

मौनी अमावस्या


                              मौनी अमावस्या
        
           मिसराइन काकी ने इस बार छोटकी के साथ मौनी अमावस्या का स्नान करने का विचार बनाया। मिसराइन की उम्र ज्यादा हो चली थी,सहारे के लिए उनकी पोती छोटकी साथ जा रही थी। मिसराइन का घर राम आसरे के पड़ोस में ही था। रामआसरे छोटकी के जाने की सूचना पर कुलबुला रहे थे।बहुत प्रयास करने के बाद भी पिताजी साथ ले जाने को तैयार न हुए।रामआसरे ने निहोर के साथ बस से जाने का प्लान बनाया।
         छोटकी कानूनन वयस्क होने की दहलीज पर थी,पर समाज की नजर में वह दहलीज कब की पार कर चुकी थी।सुबह जब बोलेरो पर सब बैठने लगे तो राम आसरे के पिताजी सीटिंग प्लान सेट कर रहे थे कि छोटकी के बगल में बैठें।सर्वसम्मति से तय हुआ कि रामआसरे के पिताजी सबसे बुजुर्ग हैं,उन्हें आगे बैठाया गया।राम आसरे के पिताजी को अपने बुजुर्ग होने पर बहुत अफसोस  हुआ। बोलेरो प्रयाग राज के लिए निकल ली।
      रामआसरे भी घंटा भर पहले नीहोर के साथ बस पकड़ चुका था।बस में गाना बज रहा था...
                  आज उनसे मिलना है हमें....।
रामआसरे पहली बार प्रयागराज जा रहा था।निहोर अपनी मां का इलाज कराने प्रयागराज जा चुका था,इस कारण अनुभव को नेतृत्व मिला।बस सिविल लाइन पहुंची,राम आसरे नीहोर के पीछे हो लिया। गांव में हमेसा रामआसरे ही आगे होता था,पर यहां उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था,एकदम भौचक्का था। इतना बड़ा शहर पहली बार रामआसरे देख रहा था।जब कुंभ मेला में पहुंचा तो दृश्य देखकर एकदम सन्न था।मेला का मतलब वह गांव का मेला समझा था। मन में यही सोच रहा था छोटकी कहां मिलेगी इस भीड़ में।भीड़ में चलता रहा,निगाहें छोटकी को तलाश रही थी।पूरा मेला घूम डाला छोटकी कहीं न दिखी।तय हुआ कि स्नान कर लिया जाय।पहले निहोर गयाराम आसरे कपड़े की रखवाली कर रहा थानीहोर स्नान करके आया।अब राम आसरे की बारी थी।
      राम आसरे महसूस कर रहा था कि उसका आत्मविश्वास काफी कम हो गया है,भीड़ में जैसे उसकी निर्णयन क्षमता कम हो गई थी।राम आसरे ने तय किया कि गंगा में सात डुबकी लगाएगा।पता नहीं क्यूं उसको लग रहा था पांच डुबकी में बात नहीं बन पाएगी।परंतु,ठंड के कारण टारगेट पूरा नहीं हो पाया।पांच डुबकी में ही उसकी सांसे थमने लगी।प्रत्येक डुबकी में गंगा मैया से यही प्रार्थना करता कि छोटकी मिल जाय।बाहर निकला तो समझ नहीं पा रहा था कि निहोंर कहां खड़ा है।इधर उधर सब जगह ढूंढ़ मारा, पर नीहोंर नहीं मिला।रामआसरे चढ्ढी में ठंड से कांप रहा था।समय बीतने के साथ राम आसरे पागल हुआ जा रहा था।छोटकी का विचार मन से गायब था।"हे नीहोंर भैया" दोहराते हुए पागलों की भांति नीहोंर को ढूंढ़ रहा था।पहली बार नीहोर को 'भैया' से संबोधित कर रहा था। एकदम दहाड़ मारकर रोने ही वाला था कि छोटकी दिख गई।
        राम आसरे जैसे डूब रहा था,डूबते को तिनके का सहारा मिल गया। एकदम भावुक होकर दौड़कर छोटकी से लिपटकर रोने लगा।छोटकी राम आसरे को देख नहीं पाई थी,अकबकाकर चिल्ला पड़ी।फिर क्या था,भीड़ ने वही किया जो अक्सर वह करती है।
         
       
   
      

सोमवार, 20 जनवरी 2020

न्यूनतम समर्थन मूल्य

प्रश्न -  न्यूनतम समर्थन मूल्य क्या है ?क्या यह उत्पादक एवं उपभोक्ता दोनों को लाभ प्रदान करता है ?तर्क दीजिए।

उत्तर -न्यूनतम समर्थन मूल्य सरकार का किसानों को यह आश्वासन है कि उपज का मूल्य एक न्यूनतम सीमा से कम नहीं होने दी जाएगी ।यदि मूल्य इस सीमा से कम होता है तो सरकार उपज को खरीदने के लिए जिम्मेदार होगी। सरकार  प्रत्येक वर्ष दो बार (रवि एवं खरीफ फसल की बुवाई के पूर्व)न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करती है। कुल 24 कृषि उपयोग के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की जाती है।
          न्यूनतम समर्थन मूल्य का उद्देश्य उपभोक्ता एवं उत्पादक दोनों के हितों को सरंक्षण प्रदान करते हुए कृषि उपजो के मूल्य को स्थिर बनाए रखना है,जिससे अर्थवयवस्था में मुद्रास्फीति से बचा जा सके।न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उपज को खरीदकर जहां एक ओर कृषकों के हितों को सरंक्षण प्रदान किया जाता है तो वहीं दूसरी ओर इस खरीद से संचित बफर स्टॉक को जारी कीमत पर PDS के माध्यम से उपभोक्ता को,जो बाजार मूल्य से कम होता है,निर्गत कर दिया जाता है।
         न्यूनतम समर्थन मूल्य में केवल कुछ फसलों को ही सम्मिलित किए जाने के कारण कृषि वस्तुओं के मूल्य में स्थिरता ला पाना बहुत ही कठिन हो रहा है।सब्जियों के मूल्य में विशेष रूप से हाल ही में प्याज की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि देखी गई है।इसी प्रकार कुछ महत्वपूर्ण फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य में आच्छादित न होने के कारण तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य का कम होने के कारण यह कृषकों को भी संतुष्ट नहीं कर पा रहा है।
        उपर्यक्त विश्लेषण से स्पस्ट है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य का उद्देश्य उत्पादक एवं उपभोक्ता दोनों के हितों का संरक्षण करना है,परंतु अपनी सीमाओं के कारण यह अपने उद्देश्य में पूरी तरह से सफल नहीं हो पा रहा है।

बेरोजगारी का कारण और सरकारी प्रयास


प्रश्न- भारत में बेरोजगारी का प्रमुख कारण क्या है ?इसको दूर करने हेतु सरकार द्वारा क्या प्रयास किया जा रहा है?
उत्तर-  जब व्यक्ति प्रचलित मजदूरी पर कार्य करने को तैयार हो फिर भी उसे कार्य ना मिले तो ऐसे लोगों को बेरोजगार की संज्ञा दी जाती है। बेरोजगारी स्वयं में समस्या होकर यह कई समस्याओं का कारण भी है। यही कारण है कि इसे गंभीरता से लिया जाता है।
        बेरोजगारी के लिए कोई एक अकेला कारण जिम्मेदार नहीं यह कई कारणों के सम्मिलित प्रभाव का परिणाम है। आधारभूत संरचना की कमी, जनसंख्या का विशाल आकार,अकुशल श्रम, तकनीकी शिक्षा की कमी, पूंजी गहन तकनीकों का प्रयोग, लोगों में जागरूकता की कमी, आराम पसंदगी आदि ऐसे कारण हैं जो बेरोजगारी के लिए जिम्मेदार हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत में बेरोजगारी की वर्तमान दर लगभग 9% प्रतिशत हैं। यह एक गंभीर स्थिति है ।बेरोजगारी से कई प्रकार की मनोसामाजिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
       नियोजन काल के प्रारंभ में यह स्वीकार किया गया था कि यदि समृद्धि को बढ़ाया जाए तो गरीबी बेरोजगारी आदि समस्याएं अपने आप ही समाप्त हो जाएंगी।इसलिए प्रारंभ में बेरोजगारी पर विशेष रूप से फोकस नहीं किया गया।इसके पीछे निस्यंदन प्रभाव (trickle down theory) की अवधारणा काम कर रही थी।परंतु बाद के वर्षों में यह महसूस किया गया कि ट्रिकल डाउन थिअरी से समस्या का समाधान नहीं हो पाएगा,इसलिए बेरोजगारी के लिए स्पष्ट नियोजन आवश्यक है ।उसके बाद से ही सरकार द्वारा बेरोजगारी पर प्रहार करने के लिए कई प्रकार के कार्यक्रम लाए गए। रोजगार देने के लिए सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के लिए रोजगार उपलब्ध कराती है तथा सरकारी प्रतिष्ठानों एवं तंत्र के लिए भी रोजगार उपलब्ध कराती है ।स्वरोजगार के लिए सरकार द्वारा ऋण भी उपलब्ध कराया जाता है तथा कौशल विकास के माध्यम से लोगों को लोगों में स्वरोजगार को बढ़ावा दिया जाता है। रोजगार कार्यक्रमों में मनरेगा का महत्वपूर्ण योगदान है,जिसकी प्रशंसा अंतरराष्ट्रीय संस्था आईएलओ द्वारा भी की गई है। इस प्रकार हम देखते हैं कि सरकार द्वारा लोगों को रोजगार भी दिया गया है तथा उन्हें प्रशिक्षण के माध्यम से स्वरोजगार के लिए सक्षम करने का प्रयास भी किया गया है। सरकार इस दो तरफा रणनीति के माध्यम से बेरोजगारी को दूर करने का प्रयास कर रही है।
       विशाल जनसंख्या के कारण सरकार द्वारा किए गए उक्त प्रयास नाकाफी सिद्ध हुए हैं। वर्तमान समय के इकोनामिक स्लोडाउन ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है ।अतः इस दिशा में सरकार द्वारा कुछ कठोर कदम उठाए जाने की आवश्यकता है जिससे रोजगार में वृद्धि की जा सके।

नगरीकरण की समस्या

प्रश्न-   भारत में नगरीकरण की प्रमुख समस्याएं क्या हैं?

उत्तर-   भारत गांवों में बसता है,ऐसा सामान्य कथन भारत के संदर्भ में किया जाता रहा है।यह इसलिए क्योंकि भारत की अधिकांश जनसंख्या गांव में बसती है। आज भी देश का शहरीकरण मात्र   31.16 प्रतिशत है, जिसका अभिप्राय है कि भारत की  68.84 प्रतिशत जनसंख्या आज भी गांव में निवास करती है।परंतु,विगत दशकों में भारत के नगरीकरण में वृद्धि देखी गई है।बढ़ते नगरीकरण से जहां सुख-सुविधाओं में वृद्धि हुई है,वहीं नगरीकरण से कई मनोसमाजार्थिक समस्याएं भी उत्पन्न हुई है।
          शहरों में स्वास्थ्य शिक्षा एवं रोजगार की संभावनाएं गांव से बेहतर हैं जिसके आकर्षण प्रभाव के कारण गांव से शहरों की ओर पलायन होता है। गांव में आधारभूत संरचना की कमी से उत्पन्न प्रतिकर्षण प्रभाव के कारण भी गांव से शहरों की ओर पलायन देखा जाता है। इन सब के संयुक्त प्रभाव के कारण शहरों की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है जिसके कारण शहरों में कई प्रकार की मनोसामाजिक, आर्थिक समस्याएं उत्पन्न हुई हैं ।यह समस्याएं निम्न हैं -
१-शहरों के अनियोजित विकास के कारण पर्यावरण का संकट उत्पन्न हुआ है। प्रदूषण शहरों की एक प्रमुख समस्या है,जिसके कारण स्वास्थ्यगत समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं।
२-रोजगार की चाहत में गांव से लोग शहर की ओर आ जाते हैं,परंतु सभी लोगों को रोजगार नहीं दिया जा सकता। रोजगार नहीं प्राप्त कर पाने की स्थिति तथा घर से लंबे समय से दूर रहने के कारण यह लोग कई प्रकार की असामाजिक गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं , जो कानून व्यवस्था के लिए समस्या उत्पन्न करते हैं।
३-बढ़ते वाहनों से ट्रैफिक की समस्या शहरों की आम समस्या हो गई है ।दिल्ली का उदाहरण हमें पता है। चौड़ी सड़कों के बावजूद ट्रैफिक की समस्या झेलनी पड़ती है, जिससे समय एवं संसाधन दोनों की बर्बादी होती है।
४-अनियोजित विकास एवं सीवर की अपर्याप्त व्यवस्था के कारण थोड़ी वर्षा से ही शहर में बाढ़ की समस्या आ जाती है। कई बार यह बाढ़ जनधन की ढेर सारी बर्बादी करता है।
५-शहर में या शहरों के आसपास बढ़ता उद्योगी करण कई प्रकार के पर्यावरण प्रदूषण उत्पन्न करता है। उद्योगों से निकला हुआ कच्चा पदार्थ जमीन के अंदर अवैज्ञानिक ढंग से निक्षेपित कर दिया जाता है जो जल प्रदूषण का कारण बनता है। पंजाब और हरियाणा में उद्योगों से निकले अपशिष्ट को जमीन के अंदर बिना परिशोधित किए डाल दिया जाता था जिससे जल प्रदूषण की गंभीर स्थिति उत्पन्न हो गई है। इस तरह के जल प्रदूषण से कैंसर जनित रोगों में तेजी से वृद्धि हुई है।
५-शहरी जीवन से लोगों की आदतों,जीवनशैली तथा उपभोग पैटर्न में व्यापक परिवर्तन हुआ है। इस बदलाव से हमारा समायोजन नहीं हो पा रहा है, जिसके कारण जीवनशैली से जुड़ी तमाम प्रकार की बीमारियां लोगों को हो रही हैं ।अवसाद की स्थिति में लोगों के आपसी संबंध भी प्रभावित हो रहे हैं तथा आय का अधिकांश हिस्सा चिकित्सा पर खर्च किया जा रहा है।
        शहरीकरण से उपजी उपर्युक्त समस्याओं के कारण ही विकसित देशों में पलायन का स्वरूप बदला है तथा अब लोग शहरों से गांव की ओर स्थानांतरित होने लगे हैं। नियोजित विकास तथा त्याग पूर्वक उपभोग से उपर्युक्त समस्याओं को कम किया जा सकता है। गांव की आधारभूत संरचना का विकास करके पलायन को रोका जा सकता है। ऐसा करके ही हम शहरीकरण की समस्या से निजात पा सकते हैं।

शनिवार, 4 जनवरी 2020

यक्ष प्रश्न

                             यक्ष प्रश्न

            इस साल ठंडक तो जैसे जान लेकर ही मानेगी।पूरा विंटर वैकेसन रजाई में ही ख़तम हो गया।रामआसरे का अवकाश अपने अनुसार तय होता है।सर्दी की छुट्टी के चार दिन बाद रामआसरे कॉलेज आया है।रामआसरे का पिछले चार साल से इंटर फाइनल हो रहा है। वर्तमान 'फेलमुक्त' और 'छात्र फ्रेंडली' शिक्षा व्यवस्था भी रामआसरे को पास कराने में असफल सिद्ध हुई है,हालांकि पूरी तरह नही क्योंकि इसी व्यवस्था के तहत रामआसरे हाई स्कूल में बाजी मारे थे।नई शिक्षा नीति के लिए रामआसरे चुनौती हैं। मौसम खराब होना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि रामआसरे का फाइनल, खेल की तरह आगे के लिए शिफ्ट हो गया है।
            रामआसरे कॉलेज में प्रवेश करते ही स्वहस्तनिर्मित बम फेंक धमाका कर दिया।बायोमेट्रिक युग में रामआसरे आज भी परंपरागत तरीके से ही अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है।धमाका आशा के अनुरूप नहीं था,इसलिए रामआसरे थोड़ा निराश हुआ।कक्षा में प्रवेश किया,नियत स्थान पर जो उसने क्लास के वातावरण के आधार पर स्वयं तय कर लिया था,जाकर बैठ गया।टीचर ने यक्ष प्रश्न किया कि,"कल्पना करिए आप कहीं जा रहे हों और रास्ते में एक लड़की के साथ छेड़खानी हो रही हो तो आप क्या करोगे?"
          क्लास में केवल दो ही लोंगों को प्रश करने का अधिकार था,एक क्लास में टीचर को तथा दूसरा रामआसरे को।भिन्नता यह थी कि टीचर केवल रामआसरे से प्रश्न भर कर सकता था,जबकि रामआसरे प्रश्न भी कर सकता था और टीचर को उसका उत्तर भी देना होता था।रामआसरे टीचर के कल्पना करने वाले प्रश्न में लड़की को छेड़ने की कल्पना कर पाया,क्योंकि वह उसी में सहज था।कक्षा के अन्य छात्रों ने अपने-अपने तरीके से ज्यादातर आदर्शात्मक उत्तर दिए।जो भी लड़की को बचाने की बात करता रामआसरे कल्पना में उसको बलभर कूट कर फिर लड़की को कल्पना में छेड़ने लगता।
            टीचर ने प्रश्न में संसोधन किया और कहा,"जो लड़की छेड़ी जा रही है यदि वह आपकी बहन हो तो आप क्या करोगे?" रामआसरे इस प्रश्न से कल्पना लोक से वास्तविकता की दुनिया मे धड़ाम से गिरा।हालांकि उसे प्रश्न का उत्तर नहीं देना होता है फिर भी वह चौधियाँ सा गया।

         रामआसरे की कल्पना शक्ति शून्य सी हो गयी।वह लड़की और बहन दोनों की कल्पना नहीं कर पा रहा था।थोड़ी सी कल्पना शक्ति जागृत हुई तो वह कल्पना में बहन की रक्षा में स्वयं को मृत पाया।

  More Hours, Less Output? Unpacking the Flawed Economics of the 70-Hour Work Week A recent proposal from Infosys Founder Narayan Murthy has...